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एस धम्मो सनंतनो
देख सकोगे। और जैसे-जैसे तुम देखने लगोगे, तुम चकित होओगे। जैसे-जैसे तुम देखते हो, फासला बढ़ता है। यहां दृष्टि गहरी होती है, दर्द से फासला बढ़ता है, दर्द दूर होने लगा। नहीं कि मिट जाएगा, दूर होगा, दोनों के बीच बड़ा अंतराल आ जाएगा। जैसे बीच का सेतु टूट गया। वहां दर्द है, यहां तुम हो।
और तब तुम और भी चकित होओगे कि जैसे-जैसे दर्द दूर होगा, दर्द का फैलाव कम होने लगेगा, सिकुड़ेगा। जैसे छोटे स्थान को घेरने लगा। ज्यादा एकाग्र होने लगेगा। एक ऐसी घड़ी आएगी सिरदर्द की कि जैसे एक सुई की नोक पर टिका रह गया-बड़ा गहन हो जाएगा, तीव्र हो जाएगा, लेकिन सूक्ष्म हो जाएगा, सुई की नोक जैसा हो जाएगा। तुम वहीं गौर से देखते रहना। ___ तब तुम एक नए अनुभव को उपलब्ध होओगे। कभी-कभी क्षणभर को नोक दिखायी पड़ेगी, क्षणभर को खो जाएगी। क्षणभर को तुम पाओगे दर्द है, क्षणभर को तुम पाओगे कहां गया? ऐसी झलकें आनी शुरू होंगी। और अगर तुम देखते ही गए, तो तुम पाओगे कि तुम्हारा जैसा दर्शन स्पष्ट हो जाता है, वैसे ही दर्द शून्य हो जाता है। द्रष्टा जितना जागता है, दर्द उतना ही शून्य हो जाता है। द्रष्टा जब परिपूर्ण जागता है, दर्द परिपूर्ण शून्य हो जाता है।
जानने वालों का अनुभव यही है कि मूर्छा में ही दुख है। होश में दुख खो जाता है। अगर तुम चिकित्सक से पूछो, सर्जन से पूछो, उसका भी एक अनुभव है। वह कहता है, जब तुम्हें बेहोश कर देते हैं, तब भी दर्द खो जाता है। इसीलिए तो आपरेशन करना हो तो बेहोश करना पड़ता है। बेहोशी का मतलब क्या है ? बेहोशी का कुल इतना मतलब है कि तुम्हारे होश और दर्द का संबंध तोड़ देते हैं। तुम्हारा होश अलग पड़ जाता है, तुम्हारा दर्द अलग पड़ जाता है। दोनों के बीच में जो संबंध जोड़ने वाले स्नायु हैं, उन्हें बेहोश कर देते हैं। फिर आपरेशन होता रहता है-तुम्हारा पेट कटता रहे, हाथ कटता रहे-तुम्हें पता भी नहीं चलता।
ठीक यही घटना परम होश में भी घटती है, बुद्धत्व में भी घटती है। तुम इतने होश से भर जाते हो कि होश से भर जाने के कारण सेतु टूट जाता है। या तो सेतु तोड़ दो, तो होश खो जाता है। या होश पूरा ले आओ, तो सेतु टूट जाता है। जो सर्जन करता है एक तरफ से, वही आत्मसाधकों ने किया है दूसरी तरफ से।
तटस्थता और शांति से भोग लो, तो तुम मुक्त हो जाओगे। पूछा है, 'फिर ज्ञानाग्नि का प्रयोजन क्या है?'
ज्ञानाग्नि का प्रयोजन यही है कि वह तुम्हें तटस्थ बनाए, शांत बनाए। ज्ञानाग्नि का अर्थ ही है, वह तुम्हें ज्ञाता बनाए, द्रष्टा बनाए।
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