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अकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति
चौंका। उसने पूछा कि तुम कब से विवाहित हो? उस नब्बे साल के आदमी ने कहा, कोई सत्तर साल हो चुके विवाहित हुए। तो उस मजिस्ट्रेट ने कहा कि अब सत्तर साल के बाद, मरने की घड़ी करीब आ रही है, अब तुम्हें तलाक की सूझी? उसने कहा, आखिर काफी काफी है। इनफ इज इनफ। किसी भी दृष्टिकोण से लें, उस आदमी ने कहा, काफी काफी है। सत्तर साल अब बहुत हो गया, अब छुटकारा चाहिए।
और फिर अब ज्यादा समय भी नहीं बचा है, उस आदमी ने कहा, मौत करीब आ रही है, अब न छूटे तो फिर कब छूटेंगे?
मैं तुमसे कहता हूं, दुख को तलाक दो, काफी काफी है।
दूसरा प्रश्न:
कल आपने कहा कि किए हुए पापों को शांति और तटस्थता के साथ भोग लो। किंतु अनंत जन्मों के पाप क्या अनंत जन्मों तक भोगने पड़ेंगे? फिर ज्ञानाग्नि का आयोजन क्या है? कृपापूर्वक इस पर प्रकाश डालें।
प ह ली तो बात, पाप करते समय जब अनंत काल की फिकर न की, करते
समय जब अनंत काल की फिकर न की, तो अब भोगते समय क्यों फिकर करते हो? और जब करने वाला अनंत काल बीत गया, तो भोगने वाला भी बीत ही जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि जिसे तुम अनंत काल कहते हो, वह अनंत है नहीं। अगर अनंत काल तुमने पाप किए, तो इसका अर्थ यह हुआ कि अब तक जो बीत गया वह अनंत हो कैसे सकता है? उसकी सीमा तो आ गयी। अब तो तुम जागने लगे और तुमने लौटकर देखा कि यह तो बहुत समय से...कहो, बहुत समय तक पाप किया, अनंत मत कहो।
पाप तुमने किया, पाप का फल कौन भोगेगा? तुम कोई तरकीब चाहते हो कि पाप तो कर लिए, पाप के फल से बच जाओ। कोई मंत्र, कोई चमत्कार, कोई तुम्हें छुटकारा दिला दे।
यहीं बुद्ध के वचन बहुत कठोर हो जाते हैं। क्योंकि बुद्ध कहते हैं, कौन तुम्हें छुटकारा दिलाएगा? और ऐसा भी नहीं है कि जागे हुए पुरुषों ने तुमसे बीच-बीच में हजारों बार न कहा हो कि रोको, बाहर आ जाओ। और ऐसा भी नहीं है कि मैं तुमसे आज कह रहा हूं कि तुम बाहर आ जाओ, तो तुम आज बाहर आ जाओगे। तुम करते ही रहोगे। अगले जन्म में फिर तुम किसी के सामने यही कहोगे कि अनंत जन्मों तक किया हुआ पाप, अब क्या अनंत जन्मों तक फल भोगने पड़ेंगे? करते
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