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एस धम्मो सनंतनो
हो जाओगे ! वही मूर्तियां तुम्हें घेरे रहेंगी मरते वक्त भी। मरने के बाद मृत्यु तुम्हें वही देगी तो तुमने जीवन में अर्जित किया हो । मृत्यु तुम्हें वही सौंप देगी जो तुमने जीवनभर में कमाया हो । मौत तुम्हें नया कुछ नहीं दे सकती। मौत तो जीवनभर का निचोड़ है।
फिर से प्रश्न को हम समझ लें, 'हम तो जीते-जी और सोते-जागते भय और अपराध-भाव के द्वारा अशेष नारकीय पीड़ा से गुजर चुकते हैं, क्या वह काफी नहीं है... ?'
किससे पूछते हो कि वह काफी नहीं? अगर काफी है, तो बाहर निकलो। अगर काफी हो चुका है, तो क्यों खड़े हो भीतर ?
नहीं, अभी काफी नहीं है। तुम्हारे अनुभव से अभी काफी नहीं है। अभी दिल कहता है, थोड़ा और भोग लें। अभी दिल कहता है, पता नहीं कहीं कोई सुख छिपा हो इस दुख में! अभी दिल कहता है, आज तक नहीं हुआ, कल हो जाए, किसे मालूम ! अभी मन भरा नहीं दुख से । अन्यथा कौन तुम्हें रोक रहा है ? द्वार - दरवाजे पर किसी ने भी सांकल नहीं चढ़ायी है। दरवाजे खुले हैं। तुम्हीं अटक रहे हो। काफी अभी हुआ नहीं। और अगर तुम्हीं नहीं जानते कि काफी हुआ है, तो अस्तित्व कैसे जानेगा कि काफी हुआ है ? अस्तित्व ने तुम्हें मालिक बनाया है, तुम्हें परिपूर्ण स्वतंत्रता दी है। जब तक तुम्हीं अपने नर्क से मुक्त न हो जाओ तब तक कोई तुम्हें मुक्त नहीं कर सकता ।
थोड़ा सोचो, दुख से भी मुक्त होना कितना कठिन मालूम हो रहा है। और बुद्धपुरुष कहते हैं, सुख से भी मुक्त हो जाना है । और तुम दुख से भी मुक्त नहीं हो पा रहे हो। क्योंकि तुम्हें दुख में सुख छिपा हुआ मालूम पड़ता है । और बुद्धपुरुष कहते हैं, सुख से भी मुक्त हो जाना है, क्योंकि उन्होंने सुख में भी दुख को ही छिपा पाया है।
दोनों की दृष्टि अगर ठीक से समझो तो अलग-अलग दृष्टिकोणों से है, लेकिन एक ही है। तुमने दुख में सुख को छिपा सोचा है । बुद्धपुरुषों ने सुख में दुख को छिपा पाया। बहुत फर्क नहीं है। जरा सा । लेकिन बहुत भी। क्योंकि अगर तुम दुख में सुख को छिपा पा रहे हो, तो तुम दुख को पकड़े रहोगे । और अगर तुम्हें यह दिखायी पड़ जाए कि तुम्हारे सारे सुख दुख का ही आवरण हैं, तो तुम दुख से तो मुक्त होओगे ही, तुम सुख से भी मुक्त हो जाओगे। तुम दोनों को छोड़कर बाहर आ जाओगे।
उस घड़ी का नाम निष्कलुष निर्वाण की घड़ी है; जब तुम सुख और दुख को पीछे छोड़कर आ जाते हो । जब तुम सोने की, लोहे की, सब जंजीरें छोड़कर बाहर आ जाते हो। और बाहर आने का एक ही आधार है— काफी का पता चल जाना, पर्याप्त हो चुका !
मैंने सुना है, एक आदमी ने नब्बे साल की उम्र में अदालत में तलाक के लिए निवेदन किया। खुद नब्बे साल का, पत्नी कोई पचासी साल की। मजिस्ट्रेट भी थोड़ा
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