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अकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति
स्वर्ग जाकर उसने पूछा कि सुकरात यहां है? क्योंकि सुकरात ईश्वर को नहीं मानता था, लेकिन सदाचारी था। लोगों ने कहा कि नहीं, सुकरात का तो यहां कुछ पता नहीं है। खबर नहीं सुनी कभी सुकरात की यहां, कौन सुकरात ? कैसा सुकरात ? सदमा लगा उसे । फिर उसने चारों तरफ स्वर्ग में खोजकर देखा और भी खबर पूछी - गौतम बुद्ध यहां हैं? तीर्थंकर महावीर यहां हैं? कोई पता नहीं। लेकिन एक बात और उसे हैरानी की हुई कि स्वर्ग बड़ा बेरौनक मालूम पड़ता है । उदास उदास है। उसने तो सोचा था उत्सव होगा वहां, लेकिन धूल-धूल सी जमी है। संसार से भी ज्यादा उदास मालूम पड़ता है । थका-हारा सा है । फूल खिले से नहीं लगते । सब तरफ गमगीनी है। बड़ा हैरान हुआ कि स्वर्ग भी स्वर्ग जैसा नहीं मालूम पड़ता । सुकरात भी नहीं, महावीर भी नहीं, बुद्ध भी नहीं, ये गए कहां ? नर्क ! यह बात ही सोचकर उसके मन को घबड़ाने लगी ।
भागा स्टेशन आया। दूसरी ट्रेन तैयार थी, जा रही थी नर्क की तरफ, चढ़ गया। उसने कहा, यह अच्छा हुआ कि वक्त पर आ गए। नर्क पहुंचा, बड़ा चकित हुआ। वहां रौनक कुछ ज्यादा मालूम पड़ती थी । गीत गाए जा रहे थे, संगीत था हवा में, फूल खिले थे, ताजा-ताजा था। उसने कहा, यह कुछ मामला क्या है ? कहीं तख्तियां तो गलत नहीं लगी हैं? यह तो स्वर्ग जैसा मालूम पड़ता है।
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वह अंदर गया, उसने लोगों से पूछा कि सुकरात ? तो उसने बताया कि सुकरात वह सामने खेत में काम कर रहा है। सुकरात वहां हल - बक्खर चला रहा था। उसने पूछा, आप नर्क में? आप यहां नर्क में क्या कर रहे हो ? इतने सदाचारी व्यक्ति को नर्क में? सुकरात ने कहा, किसने तुमसे कहा यह नर्क है ? जहां सदाचारी है वहां स्वर्ग है। हम तो जब से आए, स्वर्ग में ही हैं। उसने लोगों से पूछताछ की।
उन्होंने कहां, यह बात सच है । जब से ये कुछ लोग आए हैं - बुद्ध, महावीर, सुकरात - तब से नर्क का नक्शा बदल गया है। इन्होंने स्वर्ग बना दिया है।
उसकी नींद खुली गयी। घबड़ा गया। उसने उत्तर दिया अपने सुबह के प्रवचन में; उसने कहा कि संत स्वर्ग जाते हैं ऐसा नहीं, जहां संत जाते हैं वहां स्वर्ग है। पापी नर्क जाते हैं ऐसा नहीं, पापी जहां जाते हैं वहां नर्क है।
निर्णायक तुम हो। स्वर्ग और नर्क तुम्हारी हवा है, तुम्हारा वातावरण है। हर आदमी अपने स्वर्ग और नर्क को अपने साथ लेकर चलता है।
इसे स्मरण रखना, तो ही बुद्ध को ठीक से समझ पाओगे । दुख की आदत छोड़ो, नहीं तो दुख की आदत तुम्हें नर्क ले जाएगी। नर्क और स्वर्ग तो कहने की बातें हैं, कहने के ढंग हैं। दुख की आदत नर्क है ।
उम्र तो सारी कटी इश्के - बुतां में मोमिन
आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमां होंगे
जिंदगीभर अगर तुम मूर्तियों की पूजा करते रहे, तो मरते वक्त मुसलमान कैसे
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