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एस धम्मो सनंतनो
या, जो लोग सदाचारी नहीं थे लेकिन भगवान में भरोसा था, वे कहां जाएंगे?
वह पादरी ईमानदार आदमी रहा होगा। पादरी आमतौर से इतने ईमानदार होते नहीं। धर्मगुरु और ईमानदार, जरा मुश्किल बात है! वह धंधा ही जरा बेईमानी का है। शायद एडमंड बर्क की मौजूदगी ने भी उसे ईमानदार बनने में सहायता दी, क्योंकि यह आदमी बड़ा सदाचारी था, लेकिन इसका ईश्वर पर भरोसा नहीं था। इसका प्रश्न वास्तविक था, किताबी नहीं था। पूछ रहा था अपने बाबत कि ऐसा तो मैंने कोई आचरण नहीं किया है कि नर्क भेजा जाऊं। लेकिन ईश्वर पर मुझे भरोसा नहीं, मजबूरी है, मैं क्या करूं! तो मेरा क्या होगा?
पादरी ने कहा कि मुझे थोड़ा सोचने का मौका दें। उसने सात दिन सोचा। सोचा, कुछ समझ में न आया। क्योंकि मामला बड़ा उलझन का हो गया। कठिनाई यह हो गयी, अगर वह यह कहे कि सदाचारी परमात्मा को न मानने के कारण नर्क भेजा जाएगा, तो सदाचार का सारा मूल्य समाप्त हो गया। अगर वह यह कहे कि परमात्मा को मानने वाला असदाचारी हो तो भी स्वर्ग जाएगा, तो सिर्फ परमात्मा को मान लेना, खुशामद कर लेना, स्तुति कर देना काफी हो गया। सदाचार का क्या मूल्य रहा? और अगर वह यह कहे कि सदाचारी स्वर्ग जाएगा, परमात्मा को माने या न माने, तो भी सवाल उठता है फिर परमात्मा को मानने की जरूरत क्या? सदाचार ही निर्णायक है। तो फिर परमात्मा को बीच में क्यों लेना?
विज्ञान का एक नियम है, जितने कम सिद्धांतों से काम चल सके उतना उचित। क्योंकि ज्यादा सिद्धांत उलझाव खड़ा करते हैं। तो अगर सदाचार से ही स्वर्ग जाया जाता है और असद-आचार से नर्क जाया जाता है, तो बात खतम हो गयी, फिर परमात्मा को बीच में क्यों लेना? अगर परमात्मा को मानने से स्वर्ग जाया जाता है
और परमात्मा को न मानने से नर्क जाया जाता है, तो सदाचार की बात समाप्त हो गयी, फिर सदाचार की बात को, बकवास को बीच में मत लाओ। न्यूनतम सिद्धांत विज्ञान का आधार है। ___ इसी आधार पर बुद्ध और महावीर ने परमात्मा को इनकार किया। बड़े वैज्ञानिक चिंतक थे। कर्म का सिद्धांत पर्याप्त है। परमात्मा को बीच में लाने से अड़चन होगी। दो सिद्धांत हो जाएंगे। बिभाजन होगा। निर्णय करना मुश्किल हो जाएगा। एक ही सिद्धांत को रहने दो और उसकी सत्ता को सार्वभौम रहने दो।
सात दिन सोचा पादरी ने, कुछ सोच न पाया। जल्दी सातवें दिन चर्च आ गया कि अब क्या करें! लोग अभी आए न थे, जाकर छत पर बैठ गया। रातभर सोचता रहा था, नींद न लगी थी, झपकी लग गयी। उसने एक स्वप्न देखा। स्वप्न देखा, सात दिन का जो ऊहापोह था, वही स्वप्न बन गया। स्वप्न देखा कि एक ट्रेन में बैठा है, स्वर्ग पहुंच रहा है। उसने कहा, यह अच्छा हुआ! देख ही लें कि मामला क्या है? पता लगा लें वहीं।
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