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एस धम्मो सनंतनो
तुम चले जाते हो। __तुम असंभव की आकांक्षा करते हो। पाप तो तुम करो और फल तुम्हें न मिले। फल किसको मिलेगा फिर? दुख तो तुम बोओ, फसल कौन काटेगा? और यह तो अन्याय होगा कि फसल किसी और को काटनी पड़े। फसल तुम्हें ही काटनी पड़ेगी।
मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं, फिकर छोड़ो इसकी कि कितना समय बीत चुका, जब जागे तब जागे, तभी सुबह! और मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि तुमने जितने समय दुख बोया है, उतने ही समय तुम्हें भोगना पड़ेगा। मगर तुम्हें राजी तो होना चाहिए भोगने के लिए। भोगना न पड़ेगा। मगर तुम्हें राजी होना चाहिए भोगने के लिए। उस राजीपन में ही छुटकारा है। ____ तुम्हें कहना तो यही चाहिए कि चाहे कितना ही समय लगे, जो मैंने किया है, उसे भोगने के लिए मैं राजी हूं। चाहे अनंत काल लगे। तुम्हें अपनी तरफ से तैयारी तो यह दिखानी ही चाहिए। वह तुम्हारा सौमनस्य होगा। वह तुम्हारा सदभाव होगा। वह तुम्हारी ईमानदारी होगी, प्रामाणिकता होगी। तुम्हें यह तो कहना ही चाहिए कि जब मैंने फसल बोयी है, तो मैं काढूंगा। और जितने समय बोयी है उतने समय काटूंगा। इसमें मैं किसी और पर जिम्मेवारी नहीं देता। और न कोई ऐसा सूक्ष्म रास्ता खोजना चाहता हूं कि किसी तरह बचाव हो जाए-किसी रिश्वत से, किसी खुशामद से, किसी प्रार्थना से-नहीं, कोई बचाव नहीं चाहता। मेरे किए का फल मुझे मिलना ही चाहिए।
तुम तैयारी दिखाओ। तुम्हारी तैयारी अगर साफ हो, तो एक बात समझ लेने जैसी है, दुख का संबंध विस्तार से कम होता है, गहराई से ज्यादा होता है। दुख के दो आयाम हैं। एक तो लंबाई है और एक गहराई है। तुम्हारे पास एक कटोरी भर जल है। तुम उसे एक छोटी सी शीशी में डाल दो, तो जल की गहराई बढ़ जाती है। तुम उसे फर्श पर फैला दो, जल उतना ही है, लेकिन गहराई समाप्त हो जाती है। उथला-उथला फैल जाता है। सतह पर पर्त फैल जाती है।
तुमने जो पाप किए हैं, वह तो समय की बड़ी लंबाई पर किए हैं। लेकिन अगर तुम राजी हो झेलने को, तो तुम समय की गहराई में उनको झेल लोगे। एक सालभर का सिरदर्द एक क्षण में भी झेला जा सकता है, गहराई का सवाल है। पीड़ा इतनी सघन हो सकती है, इतनी प्राणांतक हो सकती है कि तुम्हारे पूरे अस्तित्व को तीर की तरह भेद जाए। ___ यहां तुम्हें मैं एक बात समझा देना चाहूं, जो कई दफे पूछी जाती है, लेकिन ठीक समय न होने से मैंने कभी उसका उत्तर नहीं दिया। बहुत बार पूछा जाता है कि रामकृष्ण कैंसर से मरे, रमण भी कैंसर से मरे, महावीर बड़ी गहन उदर की बीमारी से मरे, बुद्ध शरीर के विषाक्त होने से मरे! ऐसे महापुरुष, ऐसे पूर्णज्ञान को उपलब्ध लोग, ऐसी संघातक बीमारियों से मरे! कैंसर! शोभा नहीं देता, जंचता नहीं। रमण
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