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________________ एस धम्मो सनंतनो क्या तकलीफ आ गयी है, शांति से बैठकर कहो। उसने कहा, बड़ा बुरा हुआ। रात मैं सोया था, मेरे पेट पर से एक चूहा निकल गया । उस मनोवैज्ञानिक ने कहा, हद्द हो गयी, चूहा ही निकला है, कोई हाथी तो नहीं निकला ! उसने कहा, वह तो मुझे भी पता है, लेकिन चूहा निकल गया, रास्ता तो बन गया । अब हाथी भी किसी दिन निकल जाएगा। रास्ता बन गया, असली तकलीफ यह है । यह कहानी मुझे जंची। चूहे को भी मत निकलने देना, रास्ता तो बन गया। हाथी आने में कितनी देर लगेगी! एक दफा पता हो जाए कि यहां से निकला जाता है। न, वह आदमी ठीक कह रहा था, उसकी घबड़ाहट ठीक थी – सच । सुख के लिए थोड़ा रास्ता तो बनाओ। पहले चूहे की तरह सही, फिर हाथी की तरह भी निकलेगा। तुम सुख का कोई अवसर मत खोजो। तुम सुख का जो भी अवसर मिल सके, चूको ही मत । और अगर तुम ध्यान रखो, तो ऐसी कोई भी घड़ी नहीं है जहां तुम सुख का अवसर न पा सको । गहन से गहन दुख के क्षण में भी सुख की कोई किरण होती है । अंधेरी से अंधेरी रात में भी सुबह बहुत दूर नहीं होती, पास ही होती है। और फिर अंधेरी से अंधेरी रात में भी चमकते तारों का फैलाव होता है। थोड़ी नजर सुख की खोजने वाली चाहिए। अपने में भी सुख खोजो, दूसरे में भी सुख खोजो, ताकि सुख में तुम्हारी आदत रम जाए। ताकि सुख तुम्हारा सहज स्वभाव बन जाए। सुख पर तुम्हारी अनायास आंख पड़ने लगे। यह तुम्हारा ऐसा अभ्यास हो जाए कि इसके लिए कुछ करने की जरूरत न रहे, यह सहज होने लगे । अभी तुमने उलटा किया है। अभी तुमने दुख की आदत बनायी है। एक मनोवैज्ञानिक छोटा सा प्रयोग कर रहा था । उसने अपनी कक्षा में आकर बड़े ब्लैकबोर्ड पर एक छोटा सा सफेद बिंदु रखा - जरा सा - कि मुश्किल से दिखायी पड़े। फिर उसने पूछा विद्यार्थियों को कि क्या दिखायी पड़ता है ? किसी को भी उतना बड़ा ब्लैकबोर्ड दिखायी न पड़ा, सभी को वह छोटा सा बिंदु दिखायी पड़ा - जो कि मुश्किल से दिखायी पड़ता था । उसने कहा, यह चकित करने वाली बात है। इतना बड़ा तख्ता कोई नहीं कहता कि दिखायी पड़ रहा है; सभी यह कहते हैं, वह छोटा सा बिंदु दिखायी पड़ रहा है। तुम जो देखना चाहते हो, वह छोटा हो तो भी दिखायी पड़ता है। तुम जो देखना नहीं चाहते, वह बड़ा हो तो भी दिखायी नहीं पड़ता । तुम्हारी चाह पर सब कुछ निर्भर है। तुम्हारा चुनाव निर्णायक है। तो मैं तुमसे कहता हूं - इस जीवन में तुम कहते हो दुखं पाया बहुत, अब अगले जन्म में और हमें नर्क न भेजा जाए – कोई भेजने वाला नहीं है । लेकिन इस जीवन में अगर तुमने दुख की आदत बनायी, तो तुम नर्क चले जाओगे। अब तुम्हें लगता है, इसमें बड़ा अन्याय हो रहा है कि हमने जीवनभर दुख 144
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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