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________________ एस धम्मो सनंतनो कहा कि मुझे एक बड़ा अजीब सा खयाल चढ़ता है मन में कि मैं रानी हूं और रानी की तरह चलूं। मैंने कहा, तू मजे से चल। इसमें कोई अड़चन नहीं है। इस आश्रम में कोई अड़चन नहीं है। तू फूल-पत्ती का ताज भी बना ले, तो भी चलेगा। मगर एक ही खयाल रखना, और भी लोग यहां राजा-रानी हैं। उसने कहा, वह तो सब मजा ही खराब हो जाता है। अकेली मैं, तो ही मजा है। मैंने कहा, यह जरा मुश्किल बात है। क्योंकि जो सुविधा मैं तुझे देता हूं, वही सबको देता हूं। दूसरों के साथ भी राजा-रानियों जैसा व्यवहार करना, फिर कोई अड़चन नहीं है, रहो, रानी रहो, बनो राजा! बात उसकी समझ में आ गयी। बड़े होने का मजा दूसरे को छोटा दिखाने में है। तो जहां तुमने सम्मान मांगा, वहां तुमने अपमान की शुरुआत कर दी। अब जद्दोजहद होगी। अपमान से तुम दुखी होओगे। , __ और मजा यह है, सम्मान से तुम सुखी न हो पाओगे, अपमान से तुम दुखी होओगे। क्यों? क्योंकि सम्मान कितना ही मिल जाए, अंत तो नहीं आता। आगे सदा कुछ शेष तो रह ही जाता है। तृप्ति तो नहीं होती। ऐसा तो हो ही नहीं सकता है कि तुम्हें ऐसी घड़ी आ जाए सम्मान की कि अब इसके आगे कुछ भी नहीं। कुछ न कुछ बाकी रह जाएगा। सिकंदरों को भी बाकी रह जाता है। तुम कहीं भी पहुंच जाओ, किसी भी जगह पहुंच जाओ, वहां से भी तुम्हें आगे मंजिल रहेगी। तो सम्मान तुम्हें तृप्त न करेगा और सम्मान की मांग में जो अपमान की बौछार होगी सब तरफ से, वह तुम्हें बड़े कांटों से बींध जाएगी। और तुम कहोगे, दूसरे अपमान कर रहे हैं।' तुमने सम्मान की चाह में ही अपमान को निमंत्रण दिया। तुमने सफलता चाही, विफलता मिलेगी। तुमने चाहा, लोग तुम्हें भला कहें, बस भूल हो गयी। तुमने अपने अहंकार को सजाना चाहा कि लोग तुम्हारे अहंकार को नग्न करने पर उतारू हो जाएंगे। ___ लाओत्से ने कहा है, अगर तुम्हें हार से बचना हो तो जीत की आकांक्षा मत करना। और अगर तुम्हें अपमान से बचना हो तो सम्मान मत मांगना। लाओत्से ने कहा है, मेरा कोई अपमान नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने सम्मान नहीं मांगा। और मैं वहां बैठता हूं जहां लोग जूते उतारते हैं। वहां से मुझे कोई कभी नहीं भगाता। मैंने सिंहासन पर बैठने की कोई चेष्टा नहीं की। इसलिए मुझे कोई हरा नहीं सकता। कैसे हराओगे? लाओत्से यह कहता है, मैं हारा ही हुआ हूं, तुम मुझे हराओगे कैसे? मैंने जीत की योजना ही नहीं बनायी, तुम मुझे हराओगे कैसे? . इस बात को खयाल में रखो, कोई तुम्हें दूसरा न तो दुख देता है, न दे सकता है, न देने का कोई उपाय है। हां, तुम अगर अपने को दुख देना चाहो, मजे से दो। ऐसा मेरा अनुभव है कि लोग दुख को पकड़े हुए हैं, दुख को संपत्ति समझा है। दुख को छोड़ने की हिम्मत नहीं होती। क्योंकि दुख के कारण लगता है, कुछ है तो। 140
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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