________________
एस धम्मो सनंतनो
स्वर्ग बनाना है तो भी स्व से ही बनाना है। दुख पाना है तो भी मुझे ही नियंता होना पड़ेगा, आनंद पाना है तो भी मुझे ही यात्रा करनी होगी। मेरे अतिरिक्त कोई भी नहीं है।
इसलिए तो बुद्ध का धर्म भारत में बहुत दिन टिक न सका। क्योंकि यह सत्य पर इतना जोर देते हैं और हम कल्पनाशील लोग सत्य पर इतने जोर के लिए राजी नहीं। यह सत्य तो हमें खतरनाक मालूम होता है। हम बिना स्वप्न के जी ही नहीं सकते। __ सिग्मंड फ्रायड ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहा है कि जीवनभर हजारों लोगों का मनोविश्लेषण करके एक नतीजे पर मैं पहुंचा हूं कि मनुष्य सत्य के साथ जी नहीं सकता। असत्य जरूरी है, झूठ जरूरी है, धोखा जरूरी है।
यह वक्तव्य दूसरे महान जर्मन विचारक नीत्से के वक्तव्य से बड़ा मेल खाता है। नीत्से ने फ्रायङ के पहले भी कहा था कि लोग सोचते हैं, सत्य और जीवन एक है। गलत सोचते हैं। सत्य जीवन-विरोधी है। झूठ जीवन का सहारा है। लोग भ्रम के सहारे जीते हैं। सत्य तो सब सहारे छीन लेता है। सत्य तो तुम्हें निपट नग्न कर जाता है। सत्य तो तुम्हें बचने की जगह ही नहीं छोड़ता। सत्य तो तुम्हें भरी बाजार की भीड़ में नग्न खड़ा कर देता है। तुम्हें बहाने चाहिए। परमात्मा तुम्हारा सबसे बड़ा बहाना है।
बुद्ध यह नहीं कह रहे हैं कि परमात्मा नहीं है, इसे तुम खयाल रखना। बुद्ध इतना ही कह रहे हैं कि तुम जो भी परमात्मा गढ़ोगे, वह नहीं है। तुम जो भी गढ़ सकते हो, वह नहीं है। तुम्हारा गढ़ा हुआ परमात्मा नहीं है। तुम अपनी सब मूर्तियां खंडित कर डालो।
बुद्ध से बड़ा मूर्तिभंजक कोई भी नहीं हुआ। मुसलमानों ने बहुत मूर्तियां तोड़ी हैं, लेकिन फिर भी मोहम्मद इतने बड़े मूर्तिभंजक नहीं हैं, जितने बुद्ध। क्योंकि परमात्मा को स्वीकार तो किया! मत बनाओ मूर्ति, मत ढांचा रखो, लेकिन हाथ किसी दिशा में तो जोड़ोगे। मुसलमान भी काबे की तरफ हाथ जोड़कर झुकता है। जो निराकार है, उसकी भी दिशा तो बना ही लोगे। आकार निर्मित हो जाएगा। मत बनाओ चित्र, इससे क्या होता है? मन में तो चित्र बनेगा ही। बुद्ध से बड़ा कोई मूर्तिभंजक नहीं हुआ। ___ अब मैं तुम्हें याद दिला दूं कि बुद्ध परमात्मा-विरोधी नहीं हैं, परमात्मा के पक्ष में हैं इसीलिए विरोध है। वे चाहते यह हैं कि तुम्हारी सब कल्पनाएं टूट जाएं। तुम इतने नितांत अकेले छूट जाओ कि कुछ उपाय भागने का न रहे, कहीं और जाने का न रहे; कोई रास्ता न रह जाए अपने से दूर जाने का, तो तुम अपनी ही गहनता में, अपने ही स्वभाव में पाओगे उसे जिसे तुम अभी परमात्मा कहकर कल्पित करते हो। परमात्मा कल्पना नहीं है, आत्म-अनुभव है।
इसलिए पहली बात, यह तो पूछो ही मत कि हमें नर्क क्यों भेजा जाए! तुम
136