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एस धम्मो सनंतनो
क्योंकि जब तक दूसरा है और दूसरे पर टालने की सुविधा है, तब तक तुम बंधे ही रहोगे। कभी संसार तुम्हें बांधेगा और कभी धर्म तुम्हें बांध लेगा। लेकिन बांधने का सूत्र है कि कोई दूसरे पर तुम जिम्मेवारी टालते हो। भगवान है। वही करवा रहा है - तो तुम कर रहे हो। वही जहां भेजेगा, वहीं तुम जाओगे। वह सुख देगा तो सुख, दुख देगा तो दुख। तुम अपने ऊपर दायित्व नहीं लेना चाहते। तुम उस जिम्मेदारी से घबड़ाते हो, जो स्वतंत्रता लाती है।
बुद्ध मनुष्य को अंतिम महिमा मानते हैं। उसके ऊपर कोई महिमा नहीं है। और मनुष्य की स्वतंत्रता ही उसके परमात्मा होने का उपाय है।
इसे ऐसा समझो, बहुत विरोधाभासी लगेगा, बुद्ध यह कह रहे हैं कि अगर परमात्मा को माना तो कभी परमात्मा न हो सकोगे। तुम्हारी मान्यता ही बाधा बन जाएगी।
हटाओ दूसरे को। अकेले होने को राजी हो जाओ। अगर दुख है, तो जानो कि तुम्हीं कारण हो। कोई और कारण नहीं। अगर सुख चाहते हो, तो प्रार्थना से न मिलेगा, पूजा से न मिलेगा, सृजन करना होगा। फसल काटनी है, बीज बोने होंगे। स्वादिष्ट आमों की अपेक्षा है, तो आम के बीज बोने होंगे। तुम नीम के बीज बोए चले जाओ और आम पाने की आकांक्षा किए जाओ और बीच में परमात्मा का बहाना बनाए रखो, यह न चलेगा।
तो पहली तो बात यह समझ लो कि कोई है नहीं जो तुम्हें भेजता है। शायद यह किसी की धारणा के कारण ही तुम अब तक सम्हल न पाए और तुमने अपने पैरों पर ध्यान न दिया और न अपनी दिशा का चिंतन किया, न अपने को जगाया। तुम गाफिल से रहे, मूर्छित से चले। तुमने सदा यह सोचा कि जो करवा रहा है, हो रहा है। और प्रार्थना कर लेंगे, समझा लेंगे, बुझा लेंगे, रो लेंगे, मना लेंगे, परमात्मा करुणावान है। यह करुणा की धारणा भी तुम्हारी धारणा है। परमात्मा महा-उद्धारक है, यह भी तुम्हारी धारणा है। तुमने पाप किया है, वह पतित पावन है, ऐसे तुम किसको धोखा दे रहे हो? ऐसे तुम अपने ही कल्पनाओं के जाल बुनते चले जाते हो। फिर उन्हीं में तुम उलझते चले जाते हो।
बुद्ध कहते हैं, कल्पना के जालों को तोड़ो। तुम अकेले हो। तुम्हारे संसार में, तुम्हारे मनोजगत में तुम्हारे अतिरिक्त और कोई भी नहीं। संसार में भी तुम दूसरे को खोजते हो और धर्म में भी दूसरे को खोजते हो। संसार में खोजते हो पत्नी को, पति को, बेटे को, भाई को, बहन को-कोई दूसरा। अकेले होने की वहां भी तुम्हारी तैयारी नहीं है। अकेले होने में डर लगता है। अकेले घर में छूट जाते हो, भय पकड़ लेता है, कंपने लगते हो। कोई चाहिए।
अगर बिलकुल अकेले छोड़ दिए जाओ और कोई न तुम खोज सको, तो तुम कल्पना करने लगते हो। एकांत में बैठकर भी तुम दूसरे का ही सपना देखते हो।
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