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________________ के दो पहलू हैं। और यही, दो अतियों के बीच का संतुलन है। ओशो दार्शनिक के साथ-साथ बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक भी हैं। वे आज के मानव की दुश्चिताओं और ग्रंथियों को ढाई हजार वर्ष पूर्व के बुद्ध के धम्म पदों में ढूंढ लेते हैं। मन की तमान उलझनों को कभी इशारे से, तो कभी रेशा-रेशा सुलझाकर, बहुत तसल्ली और राहत प्रदान करते हैं। मनुष्य के मस्तिष्क का आधा हिस्सा पुरुष का है और आधा हिस्सा स्त्री का, यह बड़ा क्रांतिकारी वक्तव्य है जो ओशो ने दिया भी है और स्थापित भी किया है। ओशो व्यक्तित्व को टुकड़ों-टुकड़ों में विभाजित करने के पक्षधर नहीं हैं। वे इसे संपूर्णता के साथ स्वीकार करने का यत्र-तत्र सर्वत्र अनुरोध करते रहते हैं। एक पंख के साथ कहो कब विहग उड़ सका भला गगन में ये दो पंक्तियां प्राणिमात्र के अस्तित्व की संपूर्णता को रेखांकित करने में पूरी तरह सक्षम हैं। - आधुनिकता के पुजारी साहित्य और दर्शन में क्षणवाद की बहुत चर्चा करते हैं। ओशो ने अपनी प्रखर मेधा के बल पर क्षणवाद का मौलिक स्वर धम्म पदों में खोजा है और डंके की चोट कहा है कि क्षण ही शाश्वत है। एक क्षण को भी जो जग गया फिर सो न सकेगा। इस क्षण में जो संपदा हमारे पास आएगी, सदा हमारे पास रहेगी। इसीलिए वे दमन का विरोध करते हैं और परवर्ती आत्मग्लानि तथा अपराध-भावना को तुष्टिकरण ही मानते हैं। ___ 'ऊर्जा के क्षण उदात्तता के साथ' बुद्ध का ही नहीं, ओशो का भी दर्शन है। इसीलिए वे सुख-दुख, पाप, अहंकार आदि वृत्तियों को साक्षी भाव से जानने पर बल देते हैं। जो इसको साक्षी भाव से नहीं जान पाता, उसके जीवन का हर अनुचित कृत्य उसे सुख नहीं, सुख का प्रलोभन ही दे पाता है। सुखी रहना है या दुखी, यह मनुष्य का अपना निर्णय है। वह इतना सक्षम है, जो चाहे उपलब्ध कर सकता है बशर्ते कि दृष्टि तटस्थ हो। ओशो पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक की न व्याख्या करते हैं, न धमकियां देते हैं। वे तो केवल जीवन और मृत्यु दोनों ही सत्यों को सहज स्वीकृति देते हैं और उसकी शाश्वतता तथा उसमें निहित अमृत के प्रति बड़े ही रसवंत संकेत देते हैं। अकेलेपन की गहन प्रतीति को मुक्ति का द्वार मानते हैं। कल में नहीं, आज में आस्था रखते हैं। इसीलिए उन्हें महोत्सव में परमात्मा और परमात्मा में महोत्सव प्रतीत होता है। यह हमें भी प्रतीत हो सकता है। यदि हम कैमरे जैसी दृष्टि से अशांति को समझ लें। अशांति को जान लेना ही शांति से साक्षात्कार कर लेना है। यह साक्षात्कार हमारे आत्मस्वीकार से स्फूर्त होता है और तभी जीवन में क्रांति घटित होती है। जिसके जीवन में यह क्रांति घटित हो गई, उसने बुद्ध और ओशो दोनों से ही आत्यंतिक
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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