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________________ है, वे मेरे इस संवाद से अवश्य सहमत होंगे कि बुद्ध की वैज्ञानिकता, महावीर की साधना, कबीर का. फक्कड़पन और स्पष्टवादिता, कृष्ण की आनंदमयी दृष्टि, क्राइस्ट की मानवीय संवेदना, मीरा की समर्पण भावना, लाओत्से की सांकेतिकता, इन सब के समन्वय से यदि एक पवित्र प्रतिमा बनाने की कोशिश की जाए तो वह केवल ओशो की ही जीवन प्रतिमा हो सकती है। बुद्ध के उलझे हुए सूत्रों को सहजता के साथ सुलझाकर सहृदयों के समक्ष सार्थक रूप से प्रस्तुत करने वाली प्रवचनमाला ही एस धम्मो सनंतनो है। वैसे भी चिंतन के धरातल पर ओशो, बुद्ध के बहुत निकट प्रतीत होते हैं। बौद्ध धर्म का तो, बुद्ध के अनुयायियों ने बहुत विस्तार किया, पर वे उनके मूल सूत्रों और संकेतों को जिज्ञासुओं तक सही रूप से संप्रेषित नहीं कर पाए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि बुद्ध ने सदैव मूर्ति का विरोध किया, किंतु विश्वभर में सर्वाधिक मूर्तियां उन्हीं की ही पाई जाती हैं। ओशो के अनुसार ही, बुद्ध धर्म के सबसे पहले वैज्ञानिक हैं। यही कारण है कि ओशो ने बुद्ध के धम्म पदों का बहुत सूक्ष्मता के साथ अनुशीलन और विश्लेषण किया है। धम्म पदों के मूल रूप-स्वरूप को, वे बिना किसी तोड़-मरोड़ के, बड़ी आत्यंतिकता के साथ कह गए हैं, जो स्वयं बुद्ध का मंतव्य था। उनकी इस प्रवचनमाला को पढ़कर या सुनकर सदैव ऐसा लगता है कि ओशो नहीं, स्वयं बुद्ध ही, बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर अपने भिक्षुओं की जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे हैं। बुद्ध और बौद्ध धर्म का चिंतन, मनन और अध्ययन तो बहुत विद्वानों ने किया है, पर गहराई के साथ आत्मसात ओशो ही कर पाए हैं। बुद्ध ने मनुष्य पर ही सारा जोर दिया है और परमात्मा से मुक्त हो जाने का निरंतर आग्रह किया है। ओशो ने इस सूत्र की अर्थवत्ता को पूरी तरह ग्रहण कर बार-बार यह रेखांकित किया है कि हमी अपने व्यक्तित्व के नियंता, निर्णायक और मालिक हैं। पर वे इस सत्य को नहीं नकारते कि परमात्मा मनुष्य में अवतरित नहीं ऊर्ध्वगमित होता है। इसलिए अभिवादन के जिस महत्व को बुद्ध ने स्वीकारा, उसकी सटीक व्याख्या ओशो ने की और एक नया सूत्र ‘झुकने से उपलब्धि और झुकने में उपलब्धि' सहृदयों को बताकर सोचने और विचारने के लिए विवश कर दिया। ओशो ने इस प्रवचनमाला के अंतर्गत हमें तीन प्रकार के सुख दिए हैं। पहला तो, बुद्ध को जानने और पहचानने का समुचित अवसर, दूसरा अपनी मौलिक दृष्टि-जो शत-प्रतिशत ओशो की है-का चुंबकीय आकर्षण, तीसरा विश्वभर के उन तमाम साहित्यकारों, कलाकारों, दार्शनिकों एवं मनस्विदों से परिचित कराने का एक सुखद संयोग, जो बुद्ध और बुद्ध की विचारधारा के आसपास हैं। हम परमात्मा की ओर जाएं या परमात्मा हमारी ओर आए, बात एक ही है। एक सिक्के
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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