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विश्व के मौलिक चिंतकों के इतिहास में ओशो मील के पत्थर की तरह सदैव के लिए स्थापित हैं। वे अपने आप में इसलिए अद्वितीय हैं, क्योंकि वे अतुलनीय हैं। असाधारण विद्वान, बेजोड़ तार्किक, धर्मविशेष के नहीं, अपितु धार्मिकता के वे प्रतिबद्ध पक्षधर हैं। सारे विशेषण उनके अति सहज व्यक्तित्व और कृतित्व के समक्ष कतारबद्ध नतमस्तक हो जाते हैं।
उनसे अधिक शायद ही कोई बोला हो, किंतु उनके सारे प्रवचन और संवाद ही नहीं, शब्द - शब्द मौन और ध्यान के प्रति समर्पित है। दो अतियों के बीच जीवन को कला के समान जीने की प्रेरणा देना ही, उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का पर्याय है।
पूरब ने, विशेष रूप से भारत ने मनुष्य जाति को एक से एक बड़े प्रेरक दार्शनिक और धार्मिक गुरु प्रदान किए हैं, लेकिन ओशो की बात और ही है। क्योंकि वे, सब कुछ होते हुए भी इस परंपरा में नहीं आते। और यदि उन्हें इस कसौटी पर उतारने की चेष्टा की जाए तो उनका आसन एकदम अलग और सर्वोच्च शिखर पर महिमामंडित होकर वैशिष्ट्य लिए हुए दृष्टिगत होता है।
ओशो जिस विषय या व्यक्ति पर बोले हैं, पूरी वैज्ञानिकता के साथ बोले हैं। मेरी दृष्टि में तो वे धर्म और विज्ञान के सुदृढ़तम सेतु हैं । बुद्ध, महावीर, कृष्ण, मीरा, लाओत्से, क्राइस्ट, कबीर, दादू, सभी उनके बहुत प्रिय विषय रहे हैं।
जिन सुधी पाठकों और श्रोताओं ने, मेरी तरह जरा भी ओशो को पढ़ा या सुना