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एस धम्मो सनंतनो
भारी चोट पहुंचा देते हैं। तुम चौंकते हो कि मैंने ऐसी कुछ खास बात तो न कही थी, यह आदमी इतना उत्तेजित क्यों हो गया? तुमने न कही हो खास बात, लेकिन उसने कुछ खास बात छिपा रखी थी। तुम्हें पता न हो, उसे तो पता है। तुमने अनजाने ही कोई नाजुक स्थान छू दिया।
इसे आत्म-निरीक्षण बनाओ। जब भी कोई बात किसी की तुम्हें छू जाए, तो उसकी फिकर छोड़ो, तुम अपने भीतर का घाव खोजो। उस घाव को ही भर लेना साधना है।
लाग हो तो हम उसे समझें लगाव
जब न हो कुछ भी तो धोखा खाएं क्या लाग हो तो हम उसे समझें लगाव-दुश्मनी हो तो भी समझ लें कि दोस्ती है। किसी से घृणा हो तो भी मान लें कि प्रेम है।
लाग हो तो हम उसे समझें लगाव इतने से भी मान लेने के लिए सुविधा है।
जब न हो कुछ भी तो धोखा खाएं क्या जब घृणा भी न हो, प्रेम की तो बात ही छोड़ो, घृणा भी न हो; लगाव तो छोड़ो, लाग भी न हो; मित्रता तो दूर, शत्रुता भी न हो; तो धोखा खाने का उपाय क्या है?
जैसे-जैसे तुम भीतर जागकर अपने घावों को देखोगे और अपने घावों को छिपाओगे न, वरन उघाड़ोगे धूप में, हवाओं में, क्योंकि धूप और हवाओं में उघाड़े घाव भर जाते हैं, छिपाए घाव अंततः नासूर बन जाते हैं। लेकिन हमारी सारी प्रक्रिया यह है कि हम अपनी भूलों को छिपाते हैं। और छिपाने के कारण ही हम उनके नासर बना लेते हैं। उघाड़ो। प्रगट करो। दबाओ मत। किसका भय है? और जिनसे तुम भयभीत हो रहे हो, उनसे कुछ भी छिपा नहीं है।
यह बड़े आश्चर्य की बात है, चमत्कार की, कि हर आदमी सोचता है उसने सब छिपा लिया है, हालांकि किसी से कुछ छिपा नहीं है। खुद ही सोचता रहता है कि मैंने छिपा लिया है, किसी को पता नहीं; लेकिन सभी को पता है। तुम अपने को ही धोखा दे लेते हो, किसी और को धोखा नहीं दे पाते। तुमने जो भी छिपाया है, वह तुम्हारे रग-रग से उदघोषित होता रहता है।
प्रत्येक व्यक्ति बड़ी सूक्ष्म तरंगों से अपने भीतर की अंतर्निहित स्थितियों की घोषणा करता रहता है। तुम एक ब्राडकास्ट हो। तुम छिपा नहीं सकते। तुम दुखी हो, तुम कितना ही मुस्कुराओ, तुम्हारी मुस्कुराहट से दुख जाहिर होगा। तुम क्रोधी हो, तुम कितना ही शांत भाव बनाओ, तुम्हारे शांत भाव के नीचे क्रोध की छाया होगी। तुम जितना बचाने की कोशिश करोगे, उतने ही उलझोगे। बचाने से कोई कभी नहीं बचा है।
जीवन का शास्त्र कहता है, उघाड़ो! ताकि घाव भर जाएं। तुम अपनी तरफ से
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