SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत और इस दुनिया में जो भी आएगा, लोग उस पर धूल फेंकेंगे। इसलिए नहीं कि उसने कुछ धूल फेंके जाने का कारण पैदा किया था; नहीं, लोगों के हाथ में धूल है। लोगों के हाथ में कुछ और नहीं है। लोगों के हाथ में फूल नहीं हैं, धूल है। वे फेंकेंगे। इससे निर्दोष चित्त व्यक्ति को चिंतित होने का कोई कारण नहीं। वस्तुतः, निर्दोष चित्त व्यक्ति अत्यंत दया अनुभव करता है, जब कोई उसे गाली देता है, क्योंकि यह गाली इसी पर लौटकर पड़ेगी। उसके मन में बड़ी करुणा उठती है, जब किसी को वह आकाश पर थूकते देखता है, क्योंकि यह थूक इसी पर वापस आ जाएगा। जब तुम तुम्हारी की गयी निंदा से आंदोलित हो जाते हो, तो तुम स्वीकार कर लेते हो कि निंदा ठीक थी। सोचो, झूठ से कोई परेशान नहीं होता। सच से ही लोग परेशान होते हैं। अगर किसी ने कहा कि तुम बेईमान हो, तो तुम परेशान तभी होते हो जब तुम पाते हो कि तुम बेईमान हो। अगर तुम्हें अपनी ईमानदारी पर सहज भरोसा है, तो तुम हंसकर गुजर जाते हो। या तो इस आदमी के समझने में कोई भूल हो गयी, या यह आदमी जानकर ही कुछ जाल फेंक रहा होगा, लेकिन इससे तुम्हारा क्या लेना-देना? तुम उन्हीं चीजों से पीड़ित होते हो जिनको तुमने छिपा रखा है। तुम बेईमान हो और तुमने ईमानदारी का पाखंड बना रखा है। तो कोई अगर बेईमान कह दे, तो धाव को छू देता है। ऐसे घाव को छू देता है जिसे तुम छिपा रहे थे। ____ मैंने सुना है कि एक चर्च में एक पादरी लोगों को उपदेश दे रहा था। दस महाआज्ञाओं के संबंध में बोल रहा था। एक मजाकिए ने मजाक किया। उसने एक चिट्ठी लिखकर भेज दी। चिट्ठी पर लिखा था कि सब पता चल गया है, अब तुम जल्दी भाग खड़े होओ। वह पादरी को एक चिट्ठी लिखकर भेज दी कि सब पता चल गया है, अब तुम जल्दी भाग खड़े होओ। उस पादरी ने चिट्ठी पढ़ी, जल्दी से उसने बाइबिल बंद की और उसने कहा कि मुझे जरूरी काम आ गया है, मैं घर जा रहा हूं; वह नदारद ही हो गया। लोगों ने पूछा कि मामला क्या है? उसके घर गए, वह तो घर से भी सामान लेकर भाग खड़ा हुआ था। उस मजाकिए से पूछा कि तुमने लिखकर क्या भेजा था? उसने कहा कि मैं खुद ही चकित हूं। मैंने तो सिर्फ मजाक किया था। यह इतनी बड़ी ज्ञान की बातें कर रहा है-महाआज्ञाएं, दस आज्ञाएं, और यह छोड़ो, यह छोड़ो, यह छोड़ो-मैंने तो सिर्फ मजाक किया था। वह तो भाग ही गया। मुझे भी पता नहीं कि इसने किया क्या है ? तुम कभी कोशिश करना, दस मित्रों को-कोई भी दस मित्रों को-कार्ड लिख दो दस कि सब पता चल गया है, अब तुम भाग खड़े होओ। ___ सभी कुछ न कुछ कर रहे हैं। किसी तरह छिपाए हुए हैं। तुम अंधेरे में भी टटोलो तो भी उनके घाव पर हाथ पड़ जाएगा। घाव तो हैं ही। इसीलिए तो कभी-कभी तुम्हारे बिलकुल निर्दोष से दिए गए वक्तव्य लोगों को 121
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy