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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम जैसे ही भीतर मुड़े, संसार गया । अंतरमुख होते ही सन्मुख रह जाता परिवेश नहीं फिर बाहर तो खो गया। तुम भीतर मुड़े, संसार गया। बिना ध्यान के क्रिया अधूरी और ध्यान का अर्थ है, अपने भीतर ठहर जाना । करो कुछ भी, ठहरे रहो भीतर। चलने दो झंझावात, आंधियां और तूफान बाहर, तुम भीतर मत कंपो, निष्कंप रहो वहां । वही साध्य तक पहुंचा, रहते जो शरीर, अशरीर हुआ और अगर तुम भीतर डूबे, तो तुम पाओगे, शरीर में रहते ही अशरीर हो गए। जहां तुमने अशरीर-भाव जाना, वहीं तुम घाव से मुक्त हो गए। क्योंकि घाव तो शरीर में ही लग सकते हैं, आत्मा में तो कोई घाव लगते नहीं। शरीर में ही जहर व्याप्त हो सकता है, आत्मा में तो कोई जहर व्याप्त होता नहीं। तो जिसने जाना कि मैं आत्मा हूं, जिसने ध्याना कि मैं आत्मा हूं, अब पापों के मध्य में भी खड़ा रहे तो कमलवत । पानी उसे छुएगा भी नहीं । 'जो शुद्ध है, निर्मल है, ऐसे निर्दोष पुरुष को जो दोष लगाता है, उस मूढ़ का पाप उसको ही लौटकर लगता है, जैसे कि सूक्ष्म धूल हवा के आने के रुख पर फेंकने से फेंकने वाले पर ही पड़ती है।' तुम चिंता न करो। कोई गाली देगा, यह तुम्हारे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। यह गाली उस पर ही लौट जाएगी। तुम्हारा निर्दोष होना काफी है। यह गाली अपने आप ही वापस लौट जाएगी। बुद्ध कहते हैं, जैसे सूक्ष्म धूल हवा के आने पर फेंकने वाले के मुख पर ही वापस लौट जाती है। या जैसे कोई आकाश पर थूकता है, तो थूक अपने ही ऊपर गिर जाता है। लोग गालियां तो देते रहेंगे। तुम्हारे कारण गालियां नहीं देते, उनके भीतर गालियां हैं, वे करें भी क्या ? उनके भीतर बड़ा ज्वर है, बड़ा बुखार है, वे बड़े दुख और पीड़ा से भरे हैं, वे अपनी पीड़ा को फेंकते रहते हैं—थोड़े हल्के हो लेने के खयाल से । माहे - नौ पर भी उठी हैं हर तरफ से उंगलियां जो कोई दुनिया में आया उसकी रुसवाई हुई. नए चांद पर भी, जो अभी-अभी पैदा हुआ है, जिसने अभी कुछ किया ही नहीं ! माहे - नौ पर भी उठी हैं हर तरफ से उंगलियां 120 पहले दिन के चांद पर भी उंगलियां उठ जाती हैं। जो कोई दुनिया में आया उसकी रुसवाई हुई
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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