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सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय
आत्महत्या भी कर ली तुम्हारी बातें मानकर, लेकिन तुम तो खूब लंबे जीए। उसने कहा, जीना पड़ा, लोगों को समझाने के लिए।
जर्मनी का बड़ा विचारक हुआ शापेनहार। वह भी आत्महत्या का पक्षपाती था। खुद उसने की नहीं। करने की तो बात दूर रही, प्लेग फैली, तो जब गांव से सब लोग भाग रहे थे, वह भी भाग खड़ा हुआ। राह में लोगों ने पूछा कि अरे, हम तो सोचते थे तुम न भागोगे, क्योंकि तुम तो आत्महत्या में मानते हो। उसने कहा, बातचीत एक है! मुझे याद ही न रहा अपना दर्शनशास्त्र, जब मौत सामने खड़ी हो गयी। ___बुद्ध ने निर्वाण की बात की है, जहां सब बुझ जाता है। लेकिन वह भी जीवन की ही आकांक्षा है। वह परम शुद्ध जीवन की आकांक्षा है, जहां जीवन के कारण भी बाधा नहीं पड़ती, जहां जीवन की भी सीमा न रह जाए जीवन पर, ऐसे शुद्धतम अस्तित्व की।
जीवन का मूल्य परम मूल्य है, शाश्वत मूल्य है। पर कोई नीतिशास्त्र जीवन के उस परम मूल्य के लिए शब्द नहीं दे सकता, सिद्धांत नहीं बना सकता। क्योंकि वह सहज-स्फूर्त है। सब नैतिक मूल्य सामयिक मूल्य हैं। कभी एक मूल्य महत्वपूर्ण हो जाता है परिस्थितिवश, कभी दूसरा मूल्य महत्वपूर्ण हो जाता है। यह मूल्यों का परिवर्तन तो चलता रहेगा। अगर तुम्हें जीवन का मूल्य खयाल में आ जाए, तो तुम्हारे जीवन में सामयिक मूल्य अपने आप अनुचरित होने लगेंगे। अगर तुम अपने जीवन का मूल्य समझ लो तो दूसरे के जीवन का मूल्य भी तुम्हारे मन में अपने आप प्रतिस्थापित हो जाएगा।
समझो। अहिंसा नैतिक मूल्य है। लेकिन उसके प्राण हैं शाश्वत मूल्य में, जीवन के मूल्य में न तुम चाहते हो तुम्हारा जीवन कोई नष्ट करे, न तुम चाहो कि तुम किसी का जीवन नष्ट करो, अतएव अहिंसा। अहिंसा उसी दूरगामी बात को कहने का एक उपाय है-जब तुम चाहते हो तुम्हारा जीवन कोई नष्ट न करे, तो तुम भी किसी का जीवन नष्ट न करो। जिसने जीवन का मूल्य समझ लिया, अहिंसा शब्द को छोड़ दे, कोई हर्जा नहीं। व्यर्थ है फिर शब्द। फिर तो उसके भीतर से सहज-स्फूर्त जीवन ही काम करेगा।
जीवन है सत्य। तो जो नहीं है, उसे मत कहो, क्योंकि वह जीवन के प्रतिकूल होगा। इसलिए सत्य का मूल्य है। लेकिन जिसने जीवन के मूल्य को शिरोधार्य कर लिया, सत्य की बात छोड़ दे, कोई जरूरत नहीं, जीवन पर्याप्त है। प्रेम, दया, करुणा, वे मूल्य हैं, लेकिन जिसने जीवन को पहचान लिया, उसके भीतर प्रेम की छाया अपने आप चलने लगती है। जीवन के जिसने रस को जान लिया, उससे प्रेम बहेगा। लेकिन वह सहज-स्फूर्त होगा।
जो मैं कहना चाहता हूं वह यह ः शाश्वत मूल्य सहज-स्फूर्त होता है, सामाजिक मूल्य आरोपित होते हैं, समाज उन्हें सिखाता है। ऐसा समझो
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