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________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय क्या हाथ में, तुम्हारे बस में कहां है! फिर विवाद वहीं का वहीं खड़ा है। दूसरा जब तुमसे विवाद कर रहा है, तो यह मत सोचो कि विवाद में कोई सिद्धांतों की बात है। अहंकारों का संघर्ष है। दूसरा यह बर्दाश्त नहीं करता कि तुम इतने मालिक हो जाओ उसके कि तुम उसे सुखी कर दो। यह कोई बर्दाश्त नहीं करता। अपनी मौज से दुखी रहना भी लोग पसंद करते हैं, दूसरे के हाथ से सुखी होना भी पसंद नहीं करते। अहंकार को चोट लगती है। तो जब तुम किसी को सुखी करने की कोशिश करोगे, वह तुम्हें हराकर रहेगा। वह तुम्हें हजार तरह से समझाकर रहेगा कि देखो, कुछ भी नहीं हुआ। तुम्हारे सुखी करने की कोशिश में मैं और दुखी हो गया। तुम यह बात ही छोड़ दो। तुम उस दूसरे को कह दो कि तुम्हारी मौज। अगर तुमने यही तय किया है कि सुखी रहना है, तो सुखी; दुखी रहना है, दुखी। हम तुम्हें स्वीकार करते हैं, तुम जैसे हो, ठीक हो। हमने अपना तय कर लिया है। और एक व्यक्ति भी अगर तय कर ले कि सुखी रहने का निर्णय मेरा पूरा है, तो उसके आसपास एक हवा पैदा होती है, जिसमें दूसरे लोगों को भी सुख का संक्रामक रोग लगना शुरू हो जाता है। तुम कहते हो कि 'दुखी व्यक्ति के साथ रहना असह्य मालूम पड़ता है।' तो सुखी हो जाओ। क्योंकि अंततः तो हम अपने ही साथ हैं, दूसरे के साथ नहीं हैं। अंततः कौन किसके साथ है? सब अकेले-अकेले हैं। तुम अगर दुखी हो, तो ही तुम दुखी व्यक्ति के साथ हो। तुम अगर सुखी हो, तो तुम सुखी व्यक्ति के साथ हो। अब मेरे पास इतने दुखी लोग आते हैं। इससे मैं दुखी लोगों के साथ हं, ऐसा मत समझना। इतने दुखी लोग मैं आकर्षित करता हूं, बुलाता हूं, पर इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। दुखी होंगे, वह उनकी मौज है। मेरे और उनके बीच में मेरा सुख है। उसके पार उनका दुख प्रवेश नहीं कर सकता। - मैं तुम्हारे दुख को समझता हूं। लेकिन तुम्हारे दुख के कारण दुखी नहीं हूं। मैं तुम्हारे आंसुओं को समझता हूं, चाहता हूं तुम्हारे आंख से आंसू सूख जाएं, लेकिन तुम्हारे आंसुओं के कारण मैं नहीं रोता हूं। मेरे रोने से क्या हल होगा! आंसू दुगुने हो जाएंगे। तुम्हारे आंख में आंसू न रह जाएं, इसके लिए जो कुछ भी मैं कर सकता हूं, वह करता हूं। लेकिन वह करना मेरे सुख से निकलता है, मेरे दुख से नहीं। मैं तुम्हारे कारण दुखी नहीं हूं, इसे तुम खयाल रखना। मेरा सुख मेरे कारण है। वह अखंड है। उसमें तुम्हारे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। ___मेरे सुख के कारण ही मैं तुम्हारे दुख को दूर करने की चेष्टा में लगा रहता हूं। लेकिन तुम अगर दुखी बने ही रहो, तुम सुखी न हो सको, तो भी मैं दुखी नहीं होता। क्योंकि यह तुम्हारी स्वतंत्रता है। यह मेरी मौज है, मुझे मजा आता है कि तुम्हारी O
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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