________________
एस धम्मो सनंतनो
सकोगे? अगर तुम ईमानदारी से सोचोगे, तो तुम खुद भी बिबूचन में पाओगे कि मुझे भी ठीक-ठीक पता नहीं है कि क्या होगा जिससे मैं खुश हो सकता हूं! न तुम्हें पता है, न दूसरे को पता है। लोग तो कोई भी बहाने खोजे चले जाते हैं। कहते हैं, अच्छा मकान होगा तो खुश हो जाएंगे। यह सिर्फ टालना है। यह सिर्फ अपने को समझाना है। फिर अच्छा मकान भी हो जाता है, लेकिन दुख में कोई अंतर नहीं पड़ता। छोटे मकान में दुखी थे, अब बड़े मकान में दुखी हो जाते हैं। धन नहीं था तो दुखी थे, धन होता है तो दुखी हो जाते हैं। ऐसे ही जिंदगी सरकती रहती है।
मेरे देखे, सुख के लिए कोई भी कारण नहीं है। तुम्हें बहुत कठिन होगा यह समझना। कोई भी किसी कारण से सुखी नहीं होता, जो सुखी होना चाहता है अकारण सुखी होता है। वह कहता है, बस, हमने तय कर लिया अब सुखी होंगे; फिर झोपड़ी में भी सुखी होता है, महल में हो जाए तो महल में भी सुखी होता है। उसने तय कर लिया। सुख एक निर्णय है कि हमने तय कर लिया कि सुखी होंगे। तुम पूछोगे, लेकिन कारण? कारण कोई भी नहीं है।
सुख हमारा स्वभाव है। निर्णय से ही हल हो जाता है। दुख तुम्हास निर्णय है। सुख भी तुम्हारा निर्णय है। तुम जरा मेरी बात मानकर भी चलकर देखो।
तुम तय कर लो कि तीन महीने सुखी रहेंगे, फिर देखेंगे, बाद में सोचेंगे। तीन महीने एक प्रयोग कर लें कि निर्णय से सुखी रहेंगे। कुछ भी हो जाए, हम अपने सुख को न खोएंगे, पकड़-पकड़ लेंगे, बार-बार पकड़ लेंगे। छूट-छूट जाएगा हाथ से, फिर-फिर खोज लेंगे, फिर-फिर पकड़कर सम्हाल लेंगे। तीन महीने बिना कारण सुखी होंगे। तुम फिर कभी जिंदगी में दुखी न हो सकोगे। क्योंकि एक बार भी तुम्हें क्षणभर को भी यह पता चल जाए कि अकारण सुखी हुआ जा सकता है...!
सुख स्वभाव है, उसके लिए किसी कारण की कोई भी जरूरत नहीं है। वह तुम्हारे भीतर बजता हुआ सितार है-बज ही रहा है-तुमने तरकीबों से अपनी
आंखें और कान बंद कर लिए हैं। तुमने व्यर्थ की शर्ते बिठा रखी हैं कि ये-ये शर्ते पूरी होंगी, तब मैं सुखी होऊंगा। शर्ते पूरी हो जाएंगी, तुम पाओगे, फिर भी सुखी नहीं हुए। मन नयी शर्ते बना लेगा।
तो एक, वही केवल सुखी होता है इस जगत में, जो अकारण सुखी होता है। दो, दूसरे को सुखी करने की कोई सुविधा नहीं है। कैसे तुम दूसरे को सुखी करोगे? ___ मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी में कुछ विवाद हो रहा था। मैं मौजूद था, सुनता रहा। बात लंबी होती चली गयी। पत्नी भीतर गयी तो मैंने मुल्ला से कहा, व्यर्थ समय खराब कर रहे हो, राजी हो जाओ कि ठीक है। उसकी भी अक्ल में आया कि व्यर्थ इतना समय गया। पत्नी बाहर आयी, उसने कहा कि मैं बिलकुल राजी, तू जो कहती है ठीक। उसने कहा, लेकिन मैंने अपना विचार बदल दिया।
क्या करोगे? जब तक तुम राजी होते हो, तब तक दूसरा विचार बदल देता है।