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एस धम्मो सनंतनो
अलग है। आनंदित लोग विवाह करें तो आनंदित होते हैं, विवाह न करें तो आनंदित होते हैं। आनंदित होना गुणधर्म है। आनंदित होना तुम्हारा जीवन-दृष्टिकोण है। आनंदित आदमी हर घड़ी में आनंद को खोज लेता है। जहां तुम्हें कुछ भी आनंद न दिखायी पड़ता हो, वहां भी खोज लेता है । अंधेरी से अंधेरी रात में भी वह अपने आनंद के छोटे-मोटे दीए को जला लेता है। अगर तुम दुखी हो, तो भरी दोपहरी भी तुम आंख बंद करके अंधेरे में हो जाते हो ।
आनंद का कोई संबंध बाहर की परिस्थितियों से नहीं है। विवाह बाहर की परिस्थिति है। सामाजिक व्यवस्था है। इससे तुम्हारे अंतस - चेतना का कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए तुमने अपेक्षा की, वह भूल भरी थी ।
और स्त्री ने गांधीवादी ढंग का उपाय किया। स्त्रियां पुरानी गांधीवादी हैं। वे दुखी होकर तुमको सताने की व्यवस्था खोज लेती हैं। गांधी ने कोई नयी बात नहीं खोजी। गांधी की अहिंसा पुराना स्त्रैण रास्ता है। स्त्रियां सदा से अनशन करती रही हैं। जब झगड़ा हो गया पति से, अनशन कर दिया। बीमार होकर पड़ गयीं। पति को झुकना पड़ा है। क्योंकि स्त्री यह कहती है, हम तुम्हें कष्ट न देंगे, अपने को कष्ट देते हैं। अब अपने को कष्ट देना दूसरे को सताने की सबसे सुगम व्यवस्था है। तुम दूसरे को कष्ट दो तो वह बचाव भी कर ले, भाग खड़ा हो, सुरक्षा कर ले, ढाल-तलवार ले आए— कुछ तो कर ले। लेकिन तुम दूसरे को कष्ट ही नहीं देते, तुम कहते हो, हम भूखे मर जाएंगे, हम अनशन करते हैं, उपवास करते हैं । स्त्र पति को मारना चाहें तो खुद को पीट लेती हैं। पति को मारें तो बचाव भी कर ले। लेकिन खुद को मार लेती हैं, बचाव का कोई उपाय नहीं । पति को अपराधी अनुभव करवा देती हैं।
अब पति के मन में एक चोट लगती है कि मैंने काहे को ऐसा किया ! ठीक और गलत की तो बात ही खतम हो गयी। मैंने ठीक किया या गलत किया, यह तो सवाल ही न रहा । अब तो सवाल यह रह गया कि मैंने जो किया वह न करता तो अच्छा था। क्योंकि यह पत्नी नाहक दुखी हुई, अब यह मारेगी - भूखी रहेगी, खाएगी नहीं, बच्चों को पीटेगी, सामान तोड़ेगी - अब इसमें कुछ सार न रहा । और अब यह एकाध दिन का मामला नहीं है। छोटी सी घटना स्त्रियां कई दिन तक खींचती हैं।
तो पति धीरे-धीरे यह समझ लेता है कि आत्मा की शांति के लिए यही उचित है कि जो पत्नी कहे, मान लो । क्योंकि इतना लंबा खिंच जाता है मामला कि उसमें को अनुपात ही नहीं मालूम होता ।
अंबेडकर के खिलाफ गांधी ने उपवास किया। अंबेडकर ने माना नहीं कि गांधी जो उपवास कर रहे हैं, वह ठीक है । लेकिन सारे मुल्क का दबाव पड़ा कि गांधी अगर मर जाएं... वह तो बात ही खतम हो गयी कि ठीक और गलत कौन है, वह तो मसला ही बदल गया; यह तो सवाल ही न रहा कि अंबेडकर ठीक हैं कि गांधी
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