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सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय
तुम्हारे बिना कोई मरता-करता नहीं—तुम्हारे बिना जी ही न सकेंगे। पुरुष को बड़ा मजा आ जाता है कि देखो, एक स्त्री मेरे बिना जी ही नहीं सकती। मेरे बिना मर जाएगी। इतनी दुखी हो रही है कि जहर खा लेगी। तुम्हारे अहंकार को रस आया। स्त्री ने तुम्हारे अहंकार का शोषण कर लिया। तुमने उसके दुख का शोषण किया, उसने तुम्हारे अहंकार का शोषण किया; यह कोई प्रेम का नाता नहीं है। यह नाता बिलकुल बाजारू है। इस नाते में कभी फूल खिलने वाले नहीं हैं।
फिर अगर स्त्री अब दुखी न रह जाए, तो खतरा खड़ा होगा। दुखी तो उसे रहना ही पड़ेगा अब। जिस दुख ने ऐसे आड़े वक्त साथ दिया, वह दुख तो जीवनभर की संपदा हो गयी। और तुम भी प्रसन्न न होओगे, अगर वह प्रसन्न हो जाए, मैं तुमसे यह कहता हूं। तुम्हारी प्रसन्नता भी इसी में है कि वह दुखी बनी रहे और तुम उसका उद्धार करते ही रहो। रोज-रोज चले यह काम।
निश्चित ही, तुम चाहते हो कि वह प्रसन्न हो जाए। तुम्हारी चाह, जरूरी नहीं है कि तुम्हारी आंतरिक चाह हो। तुम उसे प्रसन्न देखना चाहते हो, लेकिन फिर से सोचो, अगर वह प्रसन्न हो जाए, सच में ही प्रसन्न हो जाए, तो शायद तुम उदास हो जाओ। क्योंकि तुम्हारा उद्धारक, तुम्हारा अहं-भाव तृप्त न होगा इस बात से कि वह प्रसन्न हो जाए। चाहना एक बात है, वस्तुतः चाहना बिलकुल दूसरी बात है। ___ अब तुम कहते हो, 'शादी के बाद भी दुखी रहती है, शादी के बाद भी आनंदित नहीं रहती।' ___शादी से आनंद का क्या संबंध है? जो आनंदित रहना जानता है, वह शादी में भी आनंदित रहता है, शादी के बाद भी आनंदित रहता है। जो आनंदित रहना नहीं जानता, शादी से.क्या लेना-देना? शादी से आनंद का संबंध क्या है?
तुम कभी सोचो भी तो कैसी बचकानी आकांक्षा आदमी करता है। सात चक्कर लगा लिए, बैंड-बाजा बजा, मंत्र उच्चार हुए, वेदी सजी, पूजा-पाठ हो गया, इससे आनंदित होने का क्या संबंध है? आनंद से इसका कौन सा कीमिया, कौन सा रासायनिक संबंध जुड़ता है? आनंदित होने का कोई भी तो तर्कगत संबंध नहीं है इन सब बातों से।
लेकिन समाज ऐसा मानकर चलता है कि लोग विवाहित हो गए, बस, फिर आनंद से रहने लगे। ऐसा सिर्फ कहानियों में होता है। इसलिए कहानियां विवाह के आगे नहीं जाती। राजकुमारी, राजकुमार, और बड़ा चलता है...बड़ा झगड़ा-झांसा, शादी-विवाह। फिल्में भी वहीं खतम हो जाती हैं आकर-शहनाई बजने लगी, भांवर पड़ गए, फिर राजकुमार-राजकुमारी आनंद से रहने लगे। कहानी वहां खतम होती है जहां असली उपद्रव शुरू होता है। उसके आगे कहानी कहना जरा शोभायुक्त नहीं है। उसके बाद बात चुप ही रखनी उचित है।
विवाह से कोई आनंदित नहीं होता। आनंदित लोग विवाह करते हैं, वह बात