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एस धम्मो सनंतनो
मजा लिया कि देखो, कैसा त्याग कर रहा हूं !
कुछ लोग हैं, वे विधवाओं से विवाह करते हैं। जैसे उनके विवाह होने के लिए किसी का विधवा होना पहले जरूरी है। एक आदमी है, वह आया मेरे पास, वह कहने लगा कि विधवा से विवाह कर रहा हूं। मैंने कहा, विवाह ही काफी झंझट है, तू विधवा के पीछे क्यों पड़ा है? बोला कि नहीं, समाज-सुधारक हूं। और दो-दो पुण्य एक साथ उसने कहे – विवाह भी और विधवा का उद्धार भी ! मैंने कहा, तू विवाह तो कर, विधवा वह अपने-आप हो जाएगी, तू फिकर क्यों करता है? एक काम तू कर, दूसरा वह कर लेगी।
विधवा से विवाह करने का रस ? हां, कोई किसी विधवा के प्रेम में हो, बात अलग। लेकिन विधवा के प्रेम में कोई वैधव्य से थोड़े ही प्रेम में होता है। एक स्त्री प्रेम में होता है, वह विधवा है या नहीं है, यह बात गौण है। इससे क्या लेना-देना है ? जैसे कोई स्त्री डाक्टर है, या कोई स्त्री नर्स है, या शिक्षक है, इससे क्या लेना-देना है ? ऐसे कोई विधवा है, या नहीं है विधवा, इससे क्या लेना-देना है ?
लेकिन जो आदमी विधवा से ही विवाह कर रहा है, वह स्त्री से विवाह नहीं कर रहा है, खयाल रखना। अब बड़ी कठिनाई होगी, जैसे ही शादी हो जाएगी, विधवा विधवा न रह जाएगी। रस समाप्त। जिससे प्रेम किया था, वह तो बचा ही नहीं । विधवा से प्रेम था, विधवा के उद्धार में रस था, विवाह के बाद तो स्त्री विधवा नहीं रह जाएगी। रस का कारण ही गया।
भूलकर भी समाज-सुधारकों की मूढ़ता में मत पड़ना । समाज-सुधारकों ने जितनी मूढ़ता सिखायी है और जितने अनर्गल प्रलाप की बातें कही हैं, उसका कोई हिसाब लगाना मुश्किल है। उन्होंने कितने जीवन व्यर्थ बर्बाद किए हैं, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। कोई हरिजन से विवाह कर रहा है। प्रेम के कारण विवाह हो— हो सकता है प्रेम हरिजन से हो जाए, यह गौण बात है - लेकिन हरिजन से विवाह ! कि हम तो शूद्र से ही विवाह करके रहेंगे। तो ऐसा लगता है, जैसे कि उसकी शूद्रता तुम्हारे प्रेम से ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसा लगता है कि प्रेम से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई धारणा है, सामाजिक धारणा - शूद्र के साथ विवाह !
तुमने विवाह किया एक दुखी लड़की से, क्योंकि तुम सोचते थे दुख से उसे उबार लोगे। लेकिन विवाह के साथ ही तुम्हारा भी रस समाप्त हो जाएगा, क्योंकि उबारने का काम खतम हो गया। अब कोई मजा नहीं आएगा, रोज-रोज तो उबार नहीं सकते। विवाह हो गया एक दफे हो गया। अब तुम किसी दूसरी युवती को उबारना चाहते होओगे दुख से दुखी तो बहुत हैं।
और स्त्रियों को यह गणित समझ में आ गया है कि यह पुरुषों में बड़ा उद्धारक - भाव है। मूढ़तापूर्ण है, मगर है। क्योंकि पुरुष का मूल स्वभाव अहंकारी है। तो स्त्रियां उसके सामने रोती हैं, दुखी होती हैं, पैर पड़ती हैं कि हम तो मर जाएंगे
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