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________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय ऐसा लगता है कि तुम कोई पाप कर रहे हो। सहानुभूति दो, तो ऐसा लगता है जबर्दस्ती तुमसे ली जा रही है, अकारण । न दो, तो लगता है कोई अपराध कर रहे हो । नहीं, सहानुभूति मांगने वाले को कोई क्षमा नहीं करता । सहानुभूति मांगने वाले से लोग बचते हैं। उबाता है सहानुभूति मांगने वाला । इस तरह के गलत ढंग मत सीखो। इनसे सावधान होना जरूरी है। दूसरा प्रश्न : भीतरी मसीहा के संबंध में कल आपने बहुत सूक्ष्म और गहरी बातें बतायीं। उसी संदर्भ की मेरी एक समस्या है। मैंने जिस लड़की से शादी की, वह शादी के पहले बहुत उदास रहती थी और मुझसे कहती थी कि वह इसीलिए उदास और दुखी है कि मैं उससे शादी नहीं करता। लेकिन शादी के बाद भी वह आनंदित नहीं रहती और उदास व्यक्ति के साथ रहना मुझे असह्य मालूम पड़ता है। पत्नी को सुखी करने के लिए मैं क्या करूं? ब हुत सी बातें समझनी होंगी। पहली बात – जो उदास है, जो दुखी है, उसकी उदासी और दुख के कारण झुककर भूलकर भी कभी कुछ मत करना। क्योंकि उस भांति तुम उसकी उदासी और दुख की संभावना को बढ़ा रहे हो, घटा नहीं रहे हो । जरा सोचो, कोई युवती ने तुमसे कहा कि उदास हूं, अगर तुम मुझसे शादी न करोगे तो मैं दुखी रहूंगी। तुम उसके दुख के कारण झुके, तुमने शादी कर ली। अब जिस दुख के कारण तुम उसे मिले, उसे वह कैसे छोड़ सकती है ? थोड़ा सोचो, वह तो पति के त्याग जैसा त्याग हो जाएगा। जिस दुख से उसने तुम्हें पाया, उस दुख को तो वह सम्हालकर रखेगी। और तुमने दुख के लिए झुककर जिस अहंकार का मजा लिया, तुम भी पसंद न करोगे अगर वह सुखी हो जाए । मजा क्या मिला तुम्हें ! यह विवाह कोई प्रेम का विवाह तो नहीं है । यह विवाह तो अहंकार का विवाह है। युवती दुखी थी, तुम्हें उसने उद्धारक होने का मौका दिया, समाज-सेवक होने का मौका दिया, महापुरुष होने का मौका दिया कि तुम कोई शरीर चमड़ी के रूप-रंग के कारण विवाह नहीं कर रहे हो, उद्धार ! तुम्हें बड़ा मजा दिया । तुम्हारे अहंकार को पुष्टि दी । प्रेम के कारण यह विवाह हुआ नहीं। तुमने सेवा की। तुम दुख के कारण झुके । तुमने सहानुभूति दिखायी। यह प्रेम नहीं है ! और तुमने बड़ा 91
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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