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________________ एस धम्मो सनंतनो तो दुख की कथा कहो, झंझट खतम हो । लेकिन अगर दुख को बदलना है, तो अड़चन नहीं है। मगर तुम्हारे विपरीत मैं कुछ भी न कर सकूंगा। तुम्हारे विपरीत कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। तुम अपनी गहराई में अपने मालिक हो। इसलिए मैं तुमसे न कहूंगा कि विषाद तुम्हारे भाग्य में लिखा है। तुम लिख रहे हो । रोक लो हाथ । और एक आखिरी बात इस संबंध में, कि जीवन कुछ ऐसा है, जैसे जल पर तुम कुछ लिखते हो - लिख भी नहीं पाते कि मिट जाता है। फिर कोई रेत पर कुछ लिखता है - लिखता है, एकदम नहीं मिट जाता, हवा का झोंका आएगा, समय लगेगा, मिट जाएगा। फिर कोई पत्थर पर लिखता है - हवा के झोंके भी आते रहेंगे, सदियां गुजरेंगी और न मिटेगा । मैं तुमसे कहता हूं, जीवन कुछ पानी जैसा है। तुम लिखते ही रहो, लिखते ही रहो, लिखते ही रहो, तो ही अक्षर बने रहते हैं । तुम जरा रुको कि गए। जैसे कोई साइकिल चलाता है, पैडल मारता ही रहे तो चलती है। जरा पैडल रोक ले, थोड़ा-बहुत चल जाए पुराने आधार पर ! बहुत सालों से चल रहे थे साइकिल पर बैठे, तो थोड़ी गति साइकिल में होगी, वह चल जाएगी; थोड़ा ढाल-ढलान होगा, चल जाएगी। मगर कितनी चलेगी? जल्दी ही गिर जाएगी । प्रतिपल तुम अपने जीवन को बनाते हो, प्रतिपल बनाते हो। यह धंधा हर घड़ी का है। तुम जिस दिन राजी हो गए रोकने को, अगर मन भर गया है विषाद से, अगर रस चुक गया है विषाद से, अगर विषाद के आधार पर सहानुभूति और ध्यान आकर्षित करने की इच्छा चली गयी है, तो मैं तुमसे कहता हूं, आज ही वह दिन है — घड़ी आ गयी – तुम बाहर हो जाओ। तुम मत पूछो कि कैसे बाहर हो जाऊं ? क्योंकि कैसे का कोई सवाल नहीं है। हंसकर बाहर हो जाओ। गीत गुनगुनाकर बाहर हो जाओ । झाड़ दो इस चेहरे पर पुरानी आदत को कह दो कि बस हो गया बहुत, अब नहीं | और इस क्षण के बाद विषाद के आधार पर जो भी तुमने मांगा हो जीवन में, वह मत मांगना फिर । है भी नहीं, अपमानजनक है। विषाद के आधार पर सहानुभूति मांगना अपमानजनक है। रोकर आंसुओं के आधार पर किसी का प्रेम मांगना अपमानजनक है। मनुष्य की गरिमा के योग्य नहीं । सुंदर बनो, संगीत बनो, नृत्य बनो, सृजनात्मक बनो, फिर कोई तुम्हारे पास आकर प्रेम के फूल चढ़ा जाए, शुभ है। स्वीकार करना । रोकर, चीखकर लोट-पोट कर, दुखी होकर, दूसरों को मजबूर मत करो कि सहानुभूति दिखाएं। ध्यान रखना, जो भी आदमी सहानुभूति मांगता है, लोग उसे देते हैं, लेकिन उसे कभी क्षमा नहीं कर पाते। क्योंकि वह आदमी शोषक मालूम होता है। तो जो आदमी दुख की कहानी कहता है और तुम्हें उसके दुख में सहानुभूति दिखानी पड़ती है, वह रास्ते पर दिख जाता है, तुम गली से बचकर निकल जाते हो। कि आ रहा है फिर ! उससे लोग बचते हैं, क्योंकि वह शोषण करता है । और अगर सहानुभूति न दो, तो 90
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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