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________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय बात है, मरघट भी जिंदगी मालूम होता है। चूमकर मृत को जिलाती जिंदगी ___ फूल मरघट में खिलाती जिंदगी और जब भी तुम्हें लगे कि विषाद आ रहा है, तब समझना कि तुम ला रहे हो, आ नहीं रहा है। तब झिटककर खड़े हो जाना, भाग खड़े होना, स्नान कर लेना, नाच लेना, मगर झड़क देना धूल की तरह विषाद को। तुम ला रहे हो, कोई पुरानी आदत सक्रिय हो रही है। तोड़ लेना अपने को बीच से ही। उस राग को मत दोहराओ बार-बार जो तुम्हें दुख से भर जाता है। कहीं ऐसा न हो कि राग तुम्हारा स्वभाव बन जाए। यहां न तो कोई सफलता है, न कोई विफलता। न कोई सुख, न कोई विषाद। सब तुम्हारे देखने के ढंग हैं। तरकीबें हैं आंखों की। सब तुम्हारे आंखों में बने हुए प्रतिबिंब हैं। सफलता का एक कोई पंथ नहीं विफलता की गोद में ही जीत है हारकर भी जो नहीं हारा कभी सफलता उसके हृदय का गीत है तो तुम इसको नियति मत समझो। तुम्हारे प्रश्न से लगता है कि तुम चाहते हो कि सील-मोहर लग जाए इस पर परमात्मा की—नियति है, भाग्य है। तुम अपने दुख की जिम्मेवारी परमात्मा पर मत छोड़ो। परमात्मा इनकार न करेगा, लेकिन तुम दुख में व्यर्थ दबे हुए सड़ोगे। और उससे मुक्त भी न हो सकोगे, क्योंकि तुम्हारी मान्यता यह है कि यह नियति है, भाग्य है। __ मैं तुमसे कहता हूं : इसी क्षण, अभी-कल की भी कोई जरूरत नहीं है-तुम इसके बाहर हो सकते हो। होना चाहते हो, तो हो सकते हो। होना ही न चाहो, तो कोई उपाय नहीं। तुम्हारे विरोध में तुम्हारे जीवन में कुछ भी नहीं किया जा सकता। तुम्हारा सहयोग चाहिए। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हम सुखी होना चाहते हैं। आप हमें रास्ता बताएं। मैं उनसे कहता हूं, रास्ता तो सुगम है। तुम होना चाहते हो, यह पक्का कर लो। अगर तुमने होने का तय ही कर लिया है, तो बिना रास्ते के भी हो जाओगे। कौन किसको रोक पाया सुखी होने से? रास्ता भी बाधा नहीं बनेगा, रास्ते की भी जरूरत न रहेगी। लेकिन अगर तुम होना ही न चाहो, और यह रास्ते की पूछताछ सिर्फ अपने दुख की चर्चा करने का ही एक ढंग हो, यह रास्ते की पूछताछ अपने दुख का वर्णन करने का ही उपाय हो, यह रास्ते की पूछताछ मेरी सहानुभूति के लिए हो, तो फिर कोई उपाय नहीं है। तो फिर व्यर्थ रास्ते की चर्चा ही मत करो। तुम्हें जो वर्णन करना है कर दो, मैं सुन लूं। तुम अपने दुख की कथा कह दो। अगर सहानुभूति चाहते हो, 89
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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