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एस धम्मो सनंतनो
द्वार पर खड़े हैं, तुम व्याख्या देते हो ।
वहीं हेनरिक हेन भी खड़ा उनकी स्तुति में गीत गा रहा था । उसके गीत ऐसे सुंदर हैं जैसे वेद की ऋचाएं। उसके गीतों में ऐसी महिमा है जैसे कभी-कभी थोड़े से ऋषियों के वक्तव्यों में होती है। मगर उस हेनरिक हेन की मौजूदगी भी हीगल को नडिगा सकी। वह खड़ा सुनता रहा। बड़ी बेचैनी से सुना होगा उसने यह गीत | बड़ी नाखुशी से सुना होगा यह गीत । बड़े विरोध से सुना होगा । बर्दाश्त किया होगा । शिष्टाचार के कारण सुना होगा। क्योंकि जिसको कोढ़ दिखायी पड़ता हो, उसको यह सब गीत झूठे मालूम पड़े होंगे।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, अगर तुम्हें विषाद मालूम पड़े तो थोड़ा सोचना, कहीं तुमने व्याख्या में भूल कर ली।
देखूं हिमहीरक हंसते हिलते नीले कमलों पर या मुरझायी पलकों से
झरते आंसूकण देखूं ? सौरभ पी-पीकर बहता
देखूं यह मंद समीरण
दुख की घूंटें पीती या
ठंडी सांसों को देखूं ?
और मजा यह है कि तुम जो देखोगे, वह तुम्हें ही नहीं बदलता, वह तुम्हारे भविष्य को बदलता है, तुम्हारे अतीत को बदलता है । वह तुम्हें ही नहीं बदलता, तुम्हारे सारे अस्तित्व को, तुम्हारे सारे जगत को बदलता है । और एक बार तुम्हें देखने की कला आ जाए, तो तुम पाते हो, जहां से तुम्हें दुख मिलता था वहीं से सुख के झरने बहने लगे।
दुख से देखो जगतको, सारा जगत उदास मालूम होगा। सब तरफ मृत्यु लिखी मालूम होगी। सब तरफ मरघट फैला मालूम होगा। फिर चौंकाओ, जगाओ अपने को, फिर से आंखें खोलो, मुस्कुराकर, गीत गाकर, नाचकर जगत को देखो, तुम पाओगे, मरघट खो गया। इधर तुम नाचे क्या, उधर मरघट न रहा ! सारा जगत तुम्हारे साथ नाचने लगा। रोओ, सारा जगत तुम्हारे साथ रोता हुआ मालूम होगा। हंसो, सारा जगत तुम्हारे साथ हंसता है। क्योंकि तुम्हारा दृष्टिकोण ही तुम्हारा जगत
है और तुम उसी जगत में रहते हो, जो तुम बनाते हो। तुम्हारे ही बनाए हुए जगत
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तुम रहते हो। कोई तुम्हें जगत दे नहीं जाता, तुम प्रतिपल निर्मित करते हो ।
चूमकर मृत को जिलाती जिंदगी
फूल मरघट में खिलाती जिंदगी
देखने की बात है। अन्यथा जिंदगी मरघट मालूम होती है ! फिर देखने की ही
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