SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय भी दुखी हो जाओगे और रोज-रोज तुम्हें अपने चेहरे पर और भी दुख की कालिमा पोत लेनी पड़ेगी। तुम्हारे दुख में तुम्हारा न्यस्त स्वार्थ हो जाएगा। __धर्म की यात्रा पर निकले व्यक्ति को इसे एक बुनियादी सूत्र समझ लेना चाहिए : स्वस्थ को मांगना, अस्वस्थ को नहीं। क्योंकि अस्वस्थ को मांगोगे तो और अस्वस्थ हो जाओगे। सुंदर को चाहना, असुंदर को नहीं। असुंदर को एक बार मांगा, तो लिप्त होने लगोगे। उसी में तुम्हारा धंधा जुड़ जाएगा। प्रेम को मांगना, सहानुभूति को नहीं। प्रेम को मांगना हो, तो तुम्हें प्रेम के योग्य बनना पड़ता है। इस फर्क को समझ लो। प्रेम मुफ्त नहीं मिलता। प्रेम की योग्यता चाहिए। लेकिन सहानुभूति मुफ्त मिलती है, योग्यता की कोई जरूरत नहीं। तुम्हें अगर एक सुंदर पति चाहिए, तो योग्य होना पड़ेगा। लेकिन विधवा हो जाने के लिए कोई योग्यता की जरूरत है? तलाक पाने के लिए कोई योग्यता की जरूरत है? लेकिन अगर पति तुम्हें तलाक दे दे, तो सभी सहानुभूति देने आ जाएंगे। उनमें से कोई भी यह न पूछेगा कि सहानुभूति देने की जरूरत है? तलाकी गयी पत्नी को तो कोई भी सहानुभूति देता है। अगर तुम बीमार हो, तो कोई भी सहानुभूति दिखा देगा। बीमारी को कोई थोड़े पूछता है कि सहानुभूति दें या न दें? लेकिन अगर तुम स्वस्थ हो, तो ही कोई तुम्हारे स्वास्थ्य की प्रशंसा में दो शब्द कहेगा, कोई गीत गाएगा, तुम्हें देखकर कोई गुनगुनाएगा। परम स्वास्थ्य होगा तुम्हारे भीतर, तो ही किसी के भीतर धुन पैदा होगी। प्रेम को पाना हो तो योग्यता चाहिए, सृजन चाहिए। सहानुभूति मुफ्त मिल जाती है, सहानुभूति के लिए कुछ भी नहीं करना होता। तुमने कहानी सुनी होगी, बड़ी पुरानी कहानी है कि एक स्त्री ने कंगन बनवाए सोने के। वह हरेक से बात करती, जोर-जोर से हाथ भी हिलाती, कंगन भी बजाती, लेकिन किसी ने पूछा नहीं कि कहां बनवाए ? कितने में खरीदे? ___ आखिर उसने अपने झोपड़े में आग लगा ली। जब वह छाती पीट-पीटकर रोने लगी तब एक महिला ने पूछा, अरे, हमने कंगन तो तेरे देखे ही नहीं। उसने कहा कि नासमझ, अगर पहले ही पूछ लेती तो घर में आग लगाने की जरूरत तो न पड़ती। आज झोपड़ा जलता क्यों? ___तुम हंसना मत। तुमने भी बहुत झोपड़े इसी तरह जलाए हैं, क्योंकि कंगन को कोई पूछ ही न रहा था। तुमने न-मालूम कितनी बार सिरदर्द पैदा किया है, बीमार हुए हो, रुग्ण हुए हो, उदास-दुखी हुए हो-घर जलाए–क्योंकि तुम्हारे सौंदर्य की कोई चर्चा ही न कर रहा था। तुम्हारी बुद्धिमानी की कोई बात ही न कर रहा था। तुम्हारी योग्यता का कोई गीत ही न गा रहा था। कोई प्रशंसा तुम्हारी तरफ आ ही न रही थी। कोई ध्यान दे ही न रहा था। ये कहानियां साधारण कहानियां नहीं हैं। ये हजारों साल के मनुष्य के अनुभव 85
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy