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________________ एस धम्मो सनंतनो एक-एक शब्द को समझना जरूरी है। क्योंकि हो सकता है, कोने-कातर में तुम्हारे भी, इस तरह के विचार भरे पड़े हों, इस तरह की मान्यताएं भरी पड़ी हों । पहली तो बात-धर्म को कोई पाता नहीं, धर्म में स्वयं को खोता है। धर्म कोई संपदा नहीं है, जिसे तुम अपनी मुट्ठी में ले लो। धर्म तो मृत्यु है, जिसमें तुम समा जाते हो । तुम नहीं बचते तब धर्म बचता है। जब तक तुम हो, तब तक धर्म नहीं । वह इसलिए जो दावा करे कि उसने धर्म को पा लिया है, उसने तो निश्चित ही न पाया होगा । दावेदारी का धर्म से कोई संबंध नहीं है। यह तो बात ही छोटी हो गई। जिसे तुम पा लो, वह धर्म ही बड़ा छोटा हो गया। जो तुम्हारी मुट्ठी में आ जाए, विराट न रहा । जिसे तुम्हारी बुद्धि समझ ले, वह समझने के योग्य ही न रहा । जिसे धर्म तुम्हारे तर्क की सरणी में जगह बन जाए, जो तुम्हारे कटघरों में समा जाए, I वह का आकाश न रहा। बुद्ध ने कहा है, जब तुम ऐसे मिट जाओ कि आत्मा भी न बचे, अनात्मा हो जाओ, अनात्मावत हो जाओ, अनत्ता हो जाओ, शून्य हो जाओ; तभी जिसका आविर्भाव होता है, वही धर्म है- - एस धम्मो सनंतनो। पंडित की मुट्ठी में धर्म होता है। ज्ञानी धर्म की मुट्ठी में होता है। पंडित धर्म को जानता है, ज्ञानी को धर्म जानता है। जिसने जाना, उसने यही जाना कि जानने वाला बचता कहां है ! जिसने जाना, उसने यही जाना कि अपने कारण ही न जान पाते थे, हम ही बाधा थे; जब हम मिट गए, जब हम न रहे, तब अवतरण हुआ । - ऐसा नहीं है कि तुम्हारे भीतर कुछ बाधाएं हैं, जिनके कारण तुम धर्म को नहीं जान पा रहे हो तुम बाधा हो। तुम्हारे कारण तुम धर्म को नहीं जान पा रहे हो। तुम्हें समझाया गया है, अज्ञान के कारण नहीं जान पा रहे हो; गलत है बात । तुम्हें समझाया गया है, पाप के कारण नहीं जान पा रहे हो; गलत है बात । मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हारे कारण नहीं जान पा रहे हो। अगर तुम रहे और पुण्य भी किया तो भी न जान पाओगे। अगर तुम रहे और अज्ञान की जगह ज्ञान भी पकड़ लिया तो भी न जान पाओगे। पाप तो रोकेगा ही, पुण्य भी रोकेगा। अज्ञान तो रोकेगा ही, ज्ञान भी रोकेगा । और अक्सर ऐसा हुआ है कि कभी-कभी अज्ञान इतनी बुरी तरह नहीं रोकता, जितनी बुरी तरह ज्ञान रोक लेता है। अज्ञान तो असहाय है, ज्ञान बड़ा अहंकार से भरा हुआ है। कभी- कभी पाप भी इतनी बड़ी जंजीर नहीं बनता, जितनी बड़ी जंजीर पुण्य बन जाता है। पुण्य के अहंकार में तो हीरे-जवाहरात जड़ जाते हैं । पापी तो पछताता भी है, पुण्यात्मा तो सिर्फ अकड़ता ही चला जाता है। जब भोग ने तुम्हें नहीं भटकाया है; इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, योग तुम्हें न पहुंचा पाएगा। जब तुम ही न बचोगे- न भोग करने वाला, न योग करने वाला; तुम्हारे भीतर कोई भी मौजूद न होगा, जब तुम सब भांति शून्यवत हो जाओगे, तब 86
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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