SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकला चलो रे और कब कौन साथ देता है ? किस बात में कोई साथ देता है? सब साथ धोखा है। सिहबख्ती में कब कोई किसी का साथ देता है कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इन्सां से कौन साथ देता है मुसीबत के क्षण में ? यह सब सुख का राग-रंग है। सब साथी सुख के मालूम होते हैं। अंधेरा जब घेर लेता है, कौन किसका साथ देता है ? मौत जब हाथ में आती है, तब कौन तुम्हारे हाथ में हाथ देता है ? कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इन्सां से अंधेरे में तो अपनी छाया भी साथ छोड़ देती है, दूसरे का तो भरोसा क्या ? इस सत्य को जो स्वीकार कर लेता है, समझ लेता है, वह अपने साथ हो लेता है । वह असली साथ खोज लेता है। बेघर भी समझ लेने जैसा शब्द है। इसका मतलब यह नहीं है कि तुम घर छोड़कर भाग जाओ। इसका कुल मतलब इतना है कि तुम जहां भी रहो, घर न बनाओ। इसका यह मतलब भी नहीं है कि तुम छप्पर न डालो; इसका यह मतलब भी नहीं है कि तुम किसी छाया में न ठहरो; इसका कुल मतलब इतना है कि तुम कभी भी यह मत सोचना कि यह तुम्हारा घर है— सराय ही रहे। ज्यादा से ज्यादा रात का पड़ाव है, सुबह हुई, चल पड़ना है। ऐसा बेघरपन हो; इसका नाम ही संन्यास है। एक शब्द है हमारे पास - गृहस्थ । गृहस्थ का अर्थ होता है, जिसने घर बनाया । घर में रहता है, ऐसा अर्थ मैं नहीं करता; ऐसा तुमने किया तो गलती हो जाती है। घर में तो सभी रहते हैं। घर नहीं बनाता, वह संन्यासी है। घर में तो रहेगा, लेकिन मानता नहीं कि कहीं कोई घर है । जैसे हमेशा सामान बंधा तैयार है, और जब क्षण आ जाए विदा होने को तैयार है । 1 अमरीका का एक प्रेसीडेंट मरने के करीब था तो चिकित्सक ने ठीक समझा कि उसे कह देना जरूरी है। पास आकर कहा कि आप की मृत्यु की घड़ी है । सोचा था डरेगा, घबड़ाएगा; उसने जरा सी आंख खोली और कहा, रेडी ! तैयार हूं। बस, इतनी ही बात कही। गृहस्थ पकड़ने को तैयार है, संन्यस्त छोड़ने को तैयार है । यह तैयारी की बात है; जरूरी नहीं कि तुम छोड़ो। छोड़ने का भाव ! छिन जाए तो तुम रोओगे नहीं, चीखोगे - तड़फोगे नहीं, तुम यह न कहोगे, घर मिट गया- तो तुम बेघर हो । 'पंडित भोगों को छोड़कर अकिंचन बनकर एकांत में लवलीन रहने की इच्छा करे और चित्त के मलों से अपने को परिशुद्ध करे । ' एकांत में रहने की इच्छा, अभिलाषा पोसे; इस पौधे को सींचे । 'अकिंचन बनकर...।' 77
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy