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एस धम्मो सनंतनो
मिलकर एक शून्यता बनती है, दो शून्यताएं नहीं बनतीं ।
और अगर ऐसा न हुआ हो, कि प्रेम के क्षण में भी तुम तुम रहे, भीड़ से भरे रहे, तो समझना कि वह काम का क्षण है, प्रेम का क्षण नहीं है । यही काम और प्रेम का भेद है। काम में दूसरे की तलाश है, प्रेम में अपने होने का अनुभव है। दूसरा ज्यादा से ज्यादा दर्पण बन जाता है, जिसमें हम अपनी ही तस्वीर देख लेते हैं।
जब भी तुम अकेले होओ, उन क्षणों का उपयोग करो। उन एकांत के क्षणों को सौभाग्य मानो, उनका उपयोग करो, उनमें रमो। धीरे-धीरे रस आएगा, स्वाद जमेगा। शुरू-शुरू तो बड़ी बेचैनी होगी, जी घबड़ाएगा ।
वही तो बुद्ध कहते हैं : ऐसा एकांत, जहां जी लगना कठिन हो जाता है।
तुम्हारा जी ही उधार है; वह भीड़ में ही लगता है। उसे दुर्गंध की आदत पड़ी. है, सुगंध में तिलमिलाता है। एकांत की शांति खाती है, भीड़ का शोरगुल भाता है। थोड़ी आदत बदलेगी, समय लगेगा। लेकिन एक बार स्वाद लग जाए एकांत का तो तुम भीड़ में भी रहोगे और अकेले ही रहोगे। तुम बाजार में भी खड़े रहोगे लेकिन एकांत । तुम अपने भीतर के हिमालय को कभी खोओगे ही नहीं । तुम्हारा भीतर का हिमालय तुम्हारे साथ चलेगा।
बड़े शिखर हैं तुम्हारे भीतर, बड़ी ऊंचाइयां हैं और बड़ी गहराइयां हैं। लेकिन तुम भीतर के जगत से अपरिचित ही रहे चले जाते हो।
एक दिल का दर्द है कि रहा जिंदगी के साथ
एक दिल का चैन था कि सदा ढूंढ़ते रहे
ऐसे ही चल रही है तुम्हारी जिंदगी। और चैन अभी मिल सकता है, क्योंकि जिसे तुम बाहर खोज रहे हो वह भीतर मौजूद है। और दुख अभी खो सकता है, क्योंकि बाहर की खोज के कारण पैदा हो रहा है
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फिर मुझे दोहराने दें
एक दिल का दर्द है कि रहा जिंदगी के साथ एक दिल का चैन था कि सदा ढूंढ़ते रहे
यह तुम्हारी पूरी जिंदगी की कहानी है, जीवन - कथा है। जिंदगीभर खोज रहे हैं कि कहीं कोई चैन मिल जाए। और जिंदगीभर खोज रहे हैं कि किस तरह दुख से छुटकारा हो जाए, लेकिन यह हो नहीं पाता।
दिशा कुछ गलत है। रेत से जैसे कोई तेल को निचोड़ने की कोशिश कर रहा है। चैन है भीतर, उसे तुम बाहर खोज रहे हो । दुख है बाहर, चैन है भीतर । बाहर खोजते हो, दुख ही दुख पाओगे । भीतर खोजो, सुख का स्वर बजने लगता है।
और ध्यान रखना, अकेले आना है, अकेले जाना है; तो बीच के ये थोड़े दिन भीड़ से बहुत ज्यादा अपने को मत भरो | ये बीच भी अकेलेपन से भर जाए तो तुम्हें जीवन के सारे राज, सारी कुंजियां मिल जाएंगी।
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