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एकला चलो रे करुणापूर्वक उड़ाओ। उस अवसर को भी मत चूको, क्योंकि जितनी - जितनी ऊर्जा करुणा में परिणत हो जाए, उतनी - उतनी ऊर्जा क्रोध को मिलनी बंद हो जाएगी। ऊर्जा वही है; क्रोध को देते हो तो क्रोध पलता है, करुणा को देते हो तो करुणा पलती है ।
बुद्ध के जीवन-सूत्रों में उपेक्षा बड़ी महत्वपूर्ण है । वे कहते हैं, जिस चीज से मुक्त होना हो, उस तरफ पीठ कर लो। दबाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ उपेक्षाभाव रखने की जरूरत है। अपने को वहां से शिथिल कर लो। है माना, लेकिन सारी ऊर्जा विपरीत छोर पर बहने लगे तो धीरे-धीरे तुम पाओगे, कि जो शक्ति क्रोध को मिलती थी, वह बची ही नहीं ।
इसे तुम थोड़ा करके देखो। क्रोध से जूझो भी मत । अगर कामवासना से पीड़ित हो तो कामवासना से जूझो मत, अन्यथा वह बढ़ती चली जाती है। जितने तुम लड़ोगे, उतना ही तुम पाओगे, घाव गहरे होते चले जाते हैं। और बार-बार हारोगे तो धीरे-धीरे आत्मविश्वास भी खो जाएगा। और आत्मविश्वास खो जाए तो साधक बुरी तरह भटक जाता है। लड़ो भी मत ।
'पंडित अशुभ को छोड़कर शुभ का ध्यान करे और बेघर होकर ऐसे एकांत में वास करे जहां कि जी लगना कठिन होता है । '
साधारणतः हम भीड़ में जीते हैं। साधारणतः हम भीड़ में ही बड़े हुए। साधारणतः हम भीड़ का ही अंग हैं। साधारणतः भीड़ हमारे भीतर भरी है। भीड़ ने हमारे भीतर भी कब्जा कर लिया है। हमारे भीतर कोई एकांत स्थान नहीं बचा है। तुम कहते जरूर हो कि अपने घर में तो प्राइवेसी है, एकांत है, वहां भी नहीं है। रात के सपने तक में भीड़ तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ती। तुम्हारी दयनीय अवस्था सोचो तो ! रात सोए हो, सपने में पड़े हो, तब भी लोग मौजूद हैं। अनचाहे मेहमान मौजूद हैं, न बुलाए मेहमान मौजूद हैं। और ध्यान रखना, उनका कोई कुसूर नहीं है, वे आए भी नहीं हैं।
इजिप्त में एक सम्राट हुआ, वह थोड़ा झक्की था । उसने राज्य में आज्ञा पिटवा दी कि अगर मेरे सपने में कोई आया तो मरवा डालूंगा ।
अब बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। लोग डरने लगे । करोगे भी क्या ? दूसरों का कोई मामला नहीं। कोई तुम्हारे सपने में थोड़े ही आता है। तुम ही बुलाते हो। तुम्हारी ही धारणा है। कहते हैं, उसने एक वजीर को सूली पर लटकवा दिया, क्योंकि रात सपने में आ गया, नींद खराब की ।
ध्यान रखना, कोई तुम्हारे सपने में आ नहीं रहा है। तुम भीड़ हो; अभी तुम व्यक्ति नहीं। अभी तुम्हारे भीतर आत्मा पैदा नहीं हुई। अभी तो तुम जोड़-तोड़ हो । हजार तरह का कूड़ा-करकट तुम्हारे भीतर भरा है। अभी तो तुम एक तरह के कबाड़खाने हो । किसी की टांग, किसी का हाथ, किसी की नाक, किसी का कान, सब तुम्हारे भीतर इकट्ठे हैं। तुम तो एक ढेर हो। तुम्हारे भीतर अभी तुम नहीं हो और सब कुछ है। भीतर जाओगे तो सब मिलेगा - बाजार मिलेगा, दुकान मिलेगी,
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