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________________ एस धम्मो सनंतनो सफर है दुश्वार ख्वाब कब तक बहुत बड़ी मंजिले-अदम है उस दूसरे लोक तक जाने की यात्रा लंबी है। रात बहुत थोड़ी बची है। किसी सदगुरु के सान्निध्य में जब तुम अपना बिस्तर बांधने लगते हो, पांडित्य का जन्म हुआ। पंडित से अर्थ बहुत जानने वाले का नहीं है, पंडित से अर्थ जानने के आकांक्षी का है। पंडित से अर्थ बहुत सूचनाओं के संग्रह का नहीं है, सत्य की अभीप्सा का है, जिज्ञासा का है। 'पंडित अशुभ को छोड़कर शुभ का ध्यान करे।' जब बुद्ध यह कहते हैं, अशुभ को छोड़कर शुभ का ध्यान करे, तो वे यह नहीं कह रहे हैं कि तुमसे अशुभ अभी इसी क्षण छूट जाएगा; लेकिन तुम उस पर ध्यान देना धीरे-धीरे क्षीण करो। जिस पर हम ध्यान देते हैं, उसी को हम से शक्ति मिलती है, ऊर्जा मिलती है। समझो; अगर तुम्हें बहुत क्रोध आता है, तो अक्सर ऐसा हो जाता है कि तुम क्रोध पर बहुत ध्यान देने लगते हो-चाहे मुक्त होने के लिए ही सही; कि किसी तरह क्रोध से छुटकारा हो जाए तो तुम अतिशय संवेदनशील हो जाते हो क्रोध के प्रति। तुम उसी-उसी का ध्यान रखते हो-कहीं फिर क्रोध न हो जाए, कहीं फिर क्रोध न हो जाए, कहीं फिर क्रोध न हो जाए। और यह जो बार-बार तुम क्रोध को देख रहे हो, तुम्हारी हर दृष्टि में क्रोध को ऊर्जा मिलती है। तुम जो क्रोध का बार-बार स्मरण कर रहे हो, इसमें क्रोध मजबूत होता है, सघनीभूत होता है। इसमें क्रोध की लकीर तुम्हारे ऊपर गहरी होने लगती है। __ अगर क्रोध से मुक्त होना हो तो पहला सूत्र है : क्रोध पर ध्यान मत दो। है, मान लिया; जानो कि है; भुलाओ भी मत, दबाओ भी मत, विस्मृत भी मत करो, लेकिन ध्यान करुणा पर दो। अगर क्रोध तुम्हारा रोग है तो करुणा पर ध्यान दो। करुणा के संबंध में ज्यादा सोचो, गुनो, मनन करो, गुनगुनाओ। कहीं मौका मिल जाए तो करुणा करने से मत चुको। हम अक्सर क्या करते हैं? क्रोधी आदमी कोशिश करता है कि क्रोध का अवसर मिले तो न करे क्रोध। न करने में भी हो जाएगा। न करने-करने में ही भीतर हो जाएगा; बाहर चाहे न भी प्रगट हो तो भी भीतर घना धुआं घेर लेगा, विषाद भर जाएगा, जहर फैल जाएगा। नहीं, अगर क्रोध बीमारी है तो क्रोध की उपेक्षा करो। ध्यान देने योग्य भी नहीं है, चिंतनीय भी नहीं है। करुणा पर ध्यान दो। करुणा क्रोध के ठीक दूसरे छोर पर है; उस पर ध्यान दो, ऊर्जा वहां डालो। करुणा को सींचो। करुणा को प्रेम दो। और कहीं कोई अवसर मिल जाए, छोटे से छोटा अवसर भी मिल जाए तो चूको मत। एक मक्खी भी तुम्हारे ऊपर बैठ गई है, उसे भी उड़ाना हो तो अत्यंत 72
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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