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________________ एकला चलो रे देखते, कैमरे से फोटो उतारते रहते हो। घर में एल्बम में लगाकर शांति से बैठकर देखेंगे। तुम्हारे पागलपन की कोई सीमा है ? सौभाग्य से हिमालय के पास पहुंच गए थे, भर लेते आंखें अपनी, भर लेते अपना हृदय, हिमालय की शीतलता और विशालता को जरा डूब जाने देते अपने में; तो वह काम तुमने कैमरे पर छोड़ दिया। अब कैमरा सिर्फ यंत्र है। कैमरा क्या भर पाएगा हिमालय को ? कैमरा जो खबर लाएगा, वह खबर तो घर बैठे ही बाजार से चित्र खरीदकर हो सकती थी पूरी । असली मजा तो जीवंत हिमालय के साथ सत्संग का था। जीवंत धारा को खोजना। जीवंत धारा के सहारे ही तुम मृत्यु के राज्य को पार कर पाओगे। क्यों? क्योंकि जिसने अमृत को जान लिया हो, वही तुम्हें अमृत की यात्रा पर ले जा सकेगा। अन्यथा तुम लाख प्रार्थनाएं करो, तुम लाख चीखो - चिल्लाओ आकाश से : असतो मा सदगमय - -सूना आकाश सुनता है, कोई प्रतिउत्तर नहीं है। बेचारा आकाश करेगा भी क्या ? अमृत की तरफ ले चल मृत्यु से; अंधेरे से प्रकाश की तरफ ले चल; असत्य से सत्य की तरफ ले चल- - तुम्हारी प्रार्थनाएं कौन है वहां सुनने को ? जो गया हो सत्य तक, उसके पास इस प्यास से भरकर जाना, असतो मा सदगमय, मुझे ले चल । जो पहुंचा हो उस स्रोत तक, उसके साथ थोड़ा साथ कर लेना । इसके पहले कि मेहमान विदा हो, तुम पहचान लेना । इसलिए हुआ है अक्सर ही ऐसा जग में जब चला गया मेहमान गया पहचाना है ऐसी भूल तुमसे न हो । दूसरा सूत्र : 'पंडित अशुभ को छोड़कर शुभ का ध्यान करे और बेघर होकर ऐसे एकांत स्थान में वास करे, जहां कि जी लगना कठिन होता है। पंडित भोगों को छोड़कर अकिंचन बनकर उस एकांत में लवलीन रहने की इच्छा करे और चित्त के मलों से अपने को परिशुद्ध करे । ' कर्म जिन्होंने बुद्धों की पुकार सुन ली, वे ही पंडित हैं। शास्त्र को जान लेने से कोई पंडित नहीं, परमात्मा की प्यास के जग जाने से कोई पंडित है । पंडित का अर्थ है : अब तुम जहां सीमाओं में बंधे हो, वहीं बंधे रहने को राजी नहीं; खोज शुरू हो गई। माना कि अभी अंधेरी रात ने तुम्हें घेरा है, लेकिन सुबह की तलाश शुरू हो गई। रात की अंधेरी कोख में सुबह का सूरज पलने लगा। सुबह की यात्रा शुरू हो गई। माना कि तुम अंधेरे में जीते हो, अशुभ में जीते हो, संसार में जीते हो, सब माना। लेकिन अब तुम वहीं समाप्त नहीं हो; उससे पार होने की आकांक्षा ने घर बनाया तुम्हारे हृदय में; अभीप्सा जगी । नसीम, जागो कमर को बांधो उठाओ बिस्तर किरात कम है 71
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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