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एस धम्मो सनंतनो
तिमिर का व्यूह भेद करना है कैसा यहां विराम शिखा को झंझा में पलना है ढलते रवि ने लघ प्रदीप से
सुन, क्या सत्य कहा जिसने पा लिया है, वह अब डूबने के करीब है। वह ढलता रवि है; उसकी सांझ आ गई। अब और जन्म नहीं होंगे। अब फिर सूर्योदय नहीं होगा। उसके विदा का क्षण आ गया, अलविदा की घड़ी आ गई। अब वह छोटे-छोटे दीयों से क्या कह रहा है? जिनके लिए बड़ी अंधेरी रात है और बड़ा संघर्ष है!
ढलते रवि ने लघु प्रदीप से सुन, क्या सत्य कहा उठ, कर शर-संधान तिमिर का व्यूह भेद करना है कैसा यहां विराम
शिखा को झंझा में पलना है बुद्ध पुरुषों के पास तुम्हारे जीवन की खोज में एक त्वरा आ जाती है। तुम्हारे जीवन की खोज में एक गति आ जाती है। उनकी तरंग पर चढ़कर तुम्हारी नौका भी गतिमान हो जाती है। उनकी हवाओं को अपने पाल में भरकर तुम भी प्रखर गति से यात्रा में संलग्न हो जाते हो।।
और एक बार तुम्हें अपने पैरों की गति का पता चल जाए तो बुद्ध पुरुषों का साथ छूट जाने से भी फिर भेद नहीं पड़ता। एक बार तुम्हें अपनी शक्ति का पता चल जाए, एक बार छोटा सा दीया भी जान ले कि रात कितनी ही अंधेरी हो, कितना ही प्रगाढ़ हो तम, मुझे बुझा न पाएगा। तम की कोई सामर्थ्य नहीं कि छोटी सी ज्योति को भी बुझा दे।
एक बार भरोसा आ जाए और एक बार छोटे से दीए की लौ को भी हवा के झकोरों में जीवन की पुलक मालूम होने लगे, झंझावातों में चुनौती अनुभव होने लगे, झंझावातों में अज्ञात का निमंत्रण मालूम होने लगे, तो छोटा दीया भी छोटा न रहा।
सदगुरु डूबता हुआ सूरज है। सांझ हो गई, रात के पहले कुछ बातें कह जाना चाहता है। तुम उसे सीधे-सीधे सुन लेना।
अब बहुत अजीब आदमी का मन है। एक डाक्टर हैं, इधर आते हैं; जब भी आते हैं, तब वे नोट बनाते रहते हैं। उनको मैंने कहा भी कि मैं बोल रहा हूं जीवित, तब तुम चूके जा रहे हो; तुम इन नोटों का क्या करोगे? वे कहते हैं कि बाद में घर जाकर शांति से पढ़ता हूं। तुम शास्त्र बना लेते हो, फिर उसे पढ़ते हो।
तुम ऐसे हो, हिमालय जाते हो तो कैमरा लिए रहते हो, हिमालय को नहीं
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