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एकला चलो रे
प्यास का भी स्मरण नहीं है, उन्हें तृप्ति की खबर देना बड़ी जटिल बात है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, ‘जो भली प्रकार उपदिष्ट धर्म में धर्मानुचरण करते हैं, वे ही दुस्तर मृत्यु के राज्य को पार कर पाते हैं।'
शेष धर्म की बातें सुनते रहते हैं, पकड़ते रहते हैं, स्वप्न में ही सारा खेल चलता रहता है; जागते नहीं। मंदिरों में जाओ, मस्जिदों में देखो, गिरजाघरों में, तुम्हें करोड़ों लोग सोए मिलेंगे, जो वर्षों से सुन रहे हैं धर्म की बात । सुनते-सुनते बहरे हो गए हैं, जागे नहीं। सुनते-सुनते वस्तुतः सुनने की संवेदनशीलता भी खो दी है, बोथले हो गए हैं, ऊब गए हैं; लेकिन कहीं कोई जीवन में क्रांति दिखाई नहीं पड़ती।
इस भूल में तुम मत पड़ जाना । सदगुरु खोजना जरूरी है। धर्म को पाने का और कोई रास्ता नहीं। धर्म कभी ऐसे व्यक्ति से नहीं पाया जा सकता, जिसने स्वयं न पा लिया हो—पहली बात । और ऐसे व्यक्ति से भी पाना मुश्किल है, जिसने स्वयं पा लिया हो, लेकिन तुम्हारे तक कोई सेतु न बना सके ।
इसलिए सिद्ध पुरुष तो बहुत होते हैं, सदगुरु बहुत कम। सभी सिद्ध पुरुष सदगुरु नहीं होते। सभी सदगुरु सिद्ध पुरुष जरूर होते हैं।
जैनों ने इसकी एक व्यवस्था की है। सदगुरु को वे कहते हैं, तीर्थंकर । केवल ज्ञान को तो बहुत लोग उपलब्ध होते हैं, सिद्धावस्था को बहुत लोग उपलब्ध होते हैं, लेकिन तीर्थंकर कभी-कभी कोई होता है। पूरे एक सृष्टि-समय में, सृष्टि से एक प्रलय तक केवल चौबीस होते हैं। चौबीस भी बहुत बड़ी संख्या मालूम पड़ती है।
हिंदुओं की व्याख्या में उसको अवतार कहा है । परमात्मा तक जाने वाले लोग तो बहुत होते हैं, परमात्मा को तुम तक ले आने वाले, अवतरण करा देने वाले लोग बहुत कम होते हैं। परमात्मा तक चले जाना तो कठिन है, अति कठिन नहीं; दुर्गम है, असंभव नहीं; बहुत लोग चले जाते हैं। लेकिन अवतार वही है, जो परमात्मा को तुम तक उतार लाए ।
और जब तक परमात्मा को तुम तक न उतारा जाए, तुमको परमात्मा तक जाने ‘का रास्ता नहीं मिल सकता। किसी न किसी रूप में सूरज की किरण तुम तक आ जाए, उस किरण के सहारे तुम सूरज तक पहुंच जाओगे। एक छोटा सा सहारा भी मिल जाए, सूत्र भी मिल जाए।
'वे ही दुस्तर मृत्यु के राज्य को पार करेंगे।'
एक जीवंत सदगुरु क्या कहता है ? क्या समझाता है ?
समझाने से भी ज्यादा, कहने से भी ज्यादा, उसकी मौजूदगी कुछ उकसाती है। उसकी मौजूदगी केटेलिटिक है।
ढलते रवि ने लघु प्रदीप से
सुन, क्या सत्य कहा
उठ, कर शरसंधान
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