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________________ एस धम्मो सनंतनो है, मैं भी वहां आ सकता हूं। उन्हें बड़ी पीड़ा हुई। उन्होंने कहा, आपको पता होना चाहिए, खद महात्मा गांधी भी मेरे यहां रुकते थे और आते थे। और अब तक मैंने ऐसा कोई संत पुरुष नहीं देखा, जिसको मैंने निमंत्रण दिया हो और न आया हो। __तो मैंने कहा, अब देख लो। नहीं तो एक अनुभव अधूरा रह जाएगा। मैं नहीं आऊंगा। अब तो औपचारिक रूप से भी नहीं आऊंगा। यह तो बात ही फिजूल हो गई। संत सदा के लिए बदनाम हो जाएंगे। अब तो आपको आना हो तो आ जाएं। आदमी की भाषाएं होती हैं। जिसको उन्होंने भेजा था, उन्होंने कहा-वापस वह आदमी आया और उसने कहा कि आप गलती कर रहे हैं; वे कुछ दान भी देना चाहते हैं। आपके काम में बड़ी सुविधा हो जाएगी, अगर उनका साथ मिल जाए। ___ मैंने कहा, वे मुझसे कुछ सीखना चाहते हैं, या मुझे कुछ सिखाना चाहते हैं? वे अपने जीवन में मुझसे कुछ सुविधा लेना चाहते हैं या मुझे कुछ सुविधा देना चाहते हैं? पहले उसको साफ कर लें। बड़ी कठिनाई है। तुम जिनसे समझने जाते हो-समझने भी नहीं जाते, उनको बुला लेते हो, खरीद लेते हो। __ संतत्व को खरीदने के कोई उपाय नहीं हैं। सत्य को खरीदने के कोई उपाय नहीं हैं। सत्य के हाथ तो खुद को बिकना होता है। सत्य के हाथ तो खुद को दांव पर लगाना होता है। बुद्ध कहते हैं, पहले तो उपदिष्ट, जीवंत; और दूसरा ऐसे व्यक्ति को खोजना, जो तुम्हें और न उलझा जाए। कहीं खुद ही उलझा न हो। यह भी हो सकता है, उसे झलकें मिली हों; समाधि के स्वर उसके जीवन में गूंजे हों, यह भी हो सकता है; लेकिन तुम तक पहुंचा पाए, इसका खयाल रखना-पहुंचा पाएगा या नहीं? बुद्ध से किसी ने पूछा कि आप चालीस वर्ष से लोगों को समझाते रहे हैं। आपके दस हजार भिक्षु हैं, इनमें से कितने लोग बुद्धत्व को उपलब्ध हुए? क्योंकि आप जैसा तो कोई भी दिखाई नहीं पड़ता। तो बुद्ध ने कहा, बहुत इनमें से मेरे जैसे हैं। बहुत इनमें मेरे जैसे हैं, अगर फर्क है तो सिर्फ इतना कि मैं कहने में कुशल हूं और वे कहने में कुशल नहीं हैं। जो मैंने जाना है, इनमें से भी बहुतों ने जान लिया है; जो भेद है अगर वह कोई बहुत बड़ा भेद नहीं है बुद्धत्व के लिए, वह कुछ भेद ही नहीं है उस जगह-वह इतना ही है कि मैं कह सकता हूं, वह ये नहीं कह पाते। कहने की अपनी कला है। अंधेरे में खड़े आदमी को प्रकाश के संबंध में समझाने की अपनी कला है। जिनके जीवन में सौंदर्य की कोई प्रतीति नहीं है, उनके जीवन में सौंदर्य के प्रत्यय को जन्माने की अपनी कला है। जिन्हें खुद की ही प्यास भूल गई है, जिन्हें प्यास भी भूल गई है, उन्हें तृप्ति का तो पता ही क्या हो! जिन्हें 68
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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