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एकला चलो रे
बात तो निःशब्द की है, मौन में ही जानी जाती है। शब्द के माध्यम में उतारना ऐसे ही है, जैसे कोई सुंदर फूल को पत्थर के माध्यम में बनाए। माध्यम ऐसा है कि फूल की कोमलता तो खो जाएगी। माध्यम ऐसा है कि फूल की कमनीयता तो खो जाएगी। माध्यम ऐसा है कि फूल की क्षणभंगुरता तो खो जाएगी। लेकिन कभी-कभी कोई कुशल कलाकारं पत्थर में भी फूल को उतार लेता है। पत्थर के कठोर माध्यम में भी कमनीयता को डाल देता है, घोल देता है।
तो बुद्ध कहते हैं, पहले तो पकड़ना वहां से, जहां गंगा अभी पैदा होती हो। जब मेहमान मौजूद हो, पहचान लेना। और फिर ठीक से उपदिष्ट! नहीं तो तुम और उलझ जाओगे। धर्म अतर्क्स है; तर्क से उसका कोई संबंध नहीं है।
हम उलटी ही बातें कर रहे हैं। पहला तो हम यह करते हैं, हम उनसे धर्म समझते हैं, जिन्हें खुद ही पता नहीं। हम उन चिकित्सकों के पास जाकर इलाज खोजते हैं, जो खुद बीमार हैं।
मैंने सुना है, एक आदमी की आंखों में खराबी हो गई थी और उसे हर चीज दो दिखाई पड़ने लगी थी। वह गरीब आदमी था, किसान था गांव का; वह शहर आया
और डाक्टर के पास गया। संयोग की बात! डाक्टर को भी वही बीमारी थी। और भी पुरानी थी। उन्हें एक-एक चीजें चार करके दिखाई पड़ती थीं। और जब उस गरीब आदमी ने डाक्टर को कहा कि मेरी यह तकलीफ है, इससे मुझे छुटकारा दिलाएं। मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। रास्ते पर चलना मुश्किल हो गया है। एक-एक चीज दो करके दिखाई देती है। उस डाक्टर ने कहा, घबड़ाओ मत। तुम चारों को दो करके दिखाई देती है? तुम चारों को ही यह बीमारी है? उस गरीब आदमी ने सिर ठोंक लिया। उसने कहा, धन्यभाग! पहले आप अपना इलाज करवाएं, फिर हमारी चिंता करें। __एक तो जिनसे तुम धर्म समझने जाते हो, कभी तुमने सोचा भी, उनके पास तुम्हें धर्म की कोई भी अनुभूति, कोई तरंग, कोई अंतर्दृष्टि, उनके सान्निध्य में धर्म की कोई वर्षा होते तुमने देखी है? उनके पास निकट बैठकर, तुमने कभी अपने को किसी
और दूर के आकाश से भर जाते देखा है? उनकी मौजूदगी में तुमने अपने भीतर कोई रूपांतरण अनुभव किया है ? उनके सत्संग में, जैसे स्नान हो गया हो भीतर का, ऐसी ताजगी, ऐसी फूलों की महक, ऐसी सुबह की खबर मिली है?
तुम फिक्र ही नहीं करते। तुम किसी से भी धर्म समझने पहुंच जाते हो। अक्सर तो तुम समझने भी नहीं जाते, तुम जिससे समझने जाते हो, उसे पैसे देकर घर ही बुला लेते हो।
मैं दिल्ली में मेहमान था। तो जुगल किशोर बिड़ला उन दिनों जिंदा थे; उन्होंने खबर भेजी कि आप मेरे घर आएं, मुझे आपसे कुछ समझना है। मैंने उनको कहा, अगर समझना हो तो आप जहां मैं हूं, वहां आएं। न समझना हो तो कोई हर्जा नहीं