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एस धम्मो सनंतनो
कर लो। जरूर कहीं भूल हो गई होगी। लेकिन जब भी कोई तुमसे कहेगा, अपने उपनिषद में संशोधन कर लो, तुम दुश्मन हो जाओगे। तुम पीठ फेर लोगे। लगेगा, यह आदमी तो धर्म का दुश्मन है।
यह बड़ी चकित करने वाली बात है। जब भी कोई धर्म को इस पृथ्वी पर लाता है, तभी वह धर्म का दुश्मन मालूम होता है। जिन्हें तुम धर्म के मित्र समझते हो, वे तुम्हारे ही खरीदे हुए पंडित-पुजारी हैं।
फिर दूसरी बात बुद्ध कहते हैं, भली प्रकार उपदिष्ट।।
सभी का यह सौभाग्य नहीं। सत्य को तो करोड़ों में कभी एक व्यक्ति उपलब्ध होता है। फिर जो व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होते हैं, उनमें भी सभी का सौभाग्य नहीं कि वे ठीक से कह सकें, जो उन्होंने जाना है। वह फिर करोड़ों में कभी एक-आध को उपलब्ध होता है। करोड़ों में कभी कोई एक बुद्ध होता है, करोड़ों बद्धों में कोई एक प्रगट होता है, शास्ता बनता है, सदगुरु होता है। क्योंकि जान लेना एक बात, कहना बड़ी और बात। जान लेना एक बात, जना देना बड़ी और बात। जानने से भी ज्यादा कठिन है जना देना। ___ तुम देखते हो, सुबह सूरज निकला, सौंदर्य का आविर्भाव हुआ, तुम उसमें
ओतप्रोत हो गए, नहा गए, लेकिन कभी कोई कवि उसको गा पाएगा। तुम न कह सकोगे कि क्या हुआ। कोई कवि जब गाएगा, तब तुम भला पहचान लो कि ठीक-ठीक ऐसी ही मेरी भी अनुभूति हुई थी। ठीक मेरी ही बात, जो मैंने कहनी चाही थी, न कह पाया, तुमने कह दी। ___ कोई चित्रकार कभी उसको रंग दे पाएगा। किसी की तूलिका से वह उतरेगा। तुम उसे रंग न पाओगे। सूरज तो तुमने रोज उगते देखा है, किसी दिन बैठकर चित्र बनाने की कोशिश करना; तब प्रयास बचकाना मालूम होगा। तुम उसे किसी को बताना न चाहोगे।
पक्षियों का संगीत तो तुमने सुना है, रात तारों के संगीत में भी तुमने कभी अनुभूति के कंपन पाए हैं, लेकिन कभी कोई संगीतज्ञ उस धुन को उतार पाएगा उस तल तक, जहां अभिव्यक्ति हो पाती है।
तो पहले तो उपदिष्ट धर्म को खोजना; फिर वह भी ऐसे व्यक्ति से, जो ठीक से तुम्हें समझा पाए। क्योंकि ऐसे तो धर्म बड़ी बेबूझ बात है। और अगर समझाने वाला भी बहुत साफ-सुथरा न हो तो और उलझन हो जाती है। सुलझाने की बजाय लोग उलझा जाते हैं। इससे तो बेहतर था, तुम अपने अंधेरे में ही रहते। ये रोशनी की अटपटी बातें तुम्हें और अटपटा जाएंगी।
धर्म ही बेबूझ है, अतर्क्ष्य है। अगर कोई बहुत ही कुशल चितेरा हो तो थोड़ा बहुत तुम्हारी आंखों के योग्य धर्म के चित्रण को बना पाएगा। बात शब्दों के बाहर है, अगर शब्दों का कोई धनी हो तो शायद शब्दों में थोड़ी सी धुन उतार लाएगा।
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