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एकला चलो रे कार्ल मार्क्स के वक्तव्य में सचाई है कि धर्म अफीम का नशा है। सौ में निन्यानबे प्रतिशत लोगों के संबंध में मार्क्स का वक्तव्य बिलकुल सही है; धर्म अफीम का नशा है। वक्तव्य गलत है, क्योंकि वह जो एक प्रतिशत बच रहा, उसके संबंध में वक्तव्य सही नहीं है। किसी बुद्ध के संबंध में, किसी महावीर के संबंध में, किसी कृष्ण के संबंध में वक्तव्य सही नहीं है; लेकिन निन्यानबे प्रतिशत लोगों के संबंध में सही है।
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आदमी दुख में रहा है, इसलिए स्वर्ग की कल्पनाएं पैदा करता है। उन कल्पनाओं की अफीम घेर लेती है मन को। यहां के दुख सहने योग्य हो जाते हैं वहां के सुख की आशा में। आज की तकलीफ को आदमी झेल लेता है कल के भरोसे में। रात का अंधेरापन भी अंधेरा नहीं मालूम पड़ता, सुबह कल होगी। आदमी चाह के सहारे चलता जाता है।
ध्यान रखना, धर्म तुम्हारे लिए अफीम न बन जाए। धर्म अफीम बन सकता है; खतरा है। धर्म जागरण भी बन सकता है और गहन मूर्च्छा भी । सब कुछ तुम पर निर्भर है। होशियार, जहर को भी पीता है और औषधि हो जाती है। नासमझ, अमृत भी पीए तो भी मृत्यु घट सकती है। सारी बात तुम पर निर्भर है। अंततः तुम्हीं निर्णायक हो ।
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`तो यह मत सोचना कि धर्म होने से ही धर्म तुम्हारे लिए मुक्ति का मार्ग हो जाएगा। तुम उससे बंधन भी ढाल सकते हो। तुम उससे जंजीरें भी बना सकते हो। वही बहुत लोगों ने बनाई हैं । तुम्हारा मंदिर तुम्हें परमात्मा तक पहुंचाने का द्वार भी बन सकता है— गुरुद्वारा भी हो सकता है; और यह भी हो सकता है कि वही दीवाल हो जाए; उसके कारण ही तुम परमात्मा तक न पहुंच पाओ ।
इसलिए सारी बात तुम पर निर्भर है, तुम्हारे होश पर निर्भर है। धर्म न तो जहर है, न अमृत; धर्म तो एक तटस्थ सत्य है। तुम कैसा उसका उपयोग करोगे, तुम पर निर्भर है। तुम उसी रस्सी से कुएं से पानी खींच ले सकते हो । प्यास से मरते होओ तो कुएं का जल तुम्हें बचा ले सकता है। तुम उसी रस्सी से फांसी भी लगा सकते हो। रस्सी वही है, तुम भी वही हो, लेकिन तुम्हारे और रस्सी के बीच का संबंध वही नहीं है।
अधिक लोग धर्म के कारण कारागृहों में बंद हैं। अधिक लोग धर्म के कारण जीवन में गति ही नहीं कर पाते। उनका धर्म चट्टान की तरह उनकी छाती से अटका है। अधिक लोगों के लिए धर्म नाव नहीं बना, धर्म ने ही मझधार में डुबाया है, बुरी तरह डुबाया है।
बुद्ध का आज का जो पहला सूत्र है, वह समझ लेने जैसा है।
'जो भली प्रकार उपदिष्ट धर्म में धर्मानुचरण करते हैं, वे ही दुस्तर मृत्यु के राज्य को पार करेंगे।'
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