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________________ एस धम्मो सनंतनो सम्राट बहादुरशाह जफर के शब्द हैं—सम्राट के हैं, इसलिए सोचने जैसे भी बहुत; ऐसे तो कभी ऐसी बातें भिखारी भी कह देते हैं, लेकिन संभावना है कि भिखारी के मन में अपने को सांत्वना देने की आकांक्षा हो। जब ऐसी बात कोई सम्राट कहता है तो सांत्वना का सवाल नहीं है, किसी सत्य का साक्षात हुआ हो तभी ऐसा वक्तव्य संभव है। दो दिन की जिंदगी में न इतना मचल के चल दुनिया है चलचलाव का रस्ता संभल के चल जिनके पास है, उन्हें ही पता चलता है कि संपदा व्यर्थ है। जिनके पास शक्ति है, उन्हें पता चलता है कि शक्ति सार्थक नहीं। जिनके पास नहीं है, वे तो वासना के महल बनाते ही रहते हैं। जिनके पास नहीं है, वे तो कल्पना के जाल बुनते ही रहते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिनके पास नहीं है, वे भी ऐसी बातें करने लगते हैं, जो ज्ञान की मालूम पड़ती हैं, लेकिन सौ में निन्यानबे मौकों पर वे बातें धोखे से भरी हैं। अपने को समझाने के लिए भिखमंगा भी महल की तरफ देखकर कह सकता है, कुछ सार नहीं वहां-समझाने को, कि अगर सार होता तो मैं महल को पा ही लेता न! सार नहीं है, इसलिए छोड़ा हुआ है। __ जिसे हम पा नहीं पाते, उसे मत समझना कि हमने छोड़ा है। जिसे हम पाकर छोड़ते हैं, उसे ही समझना कि छोड़ा है! जीवन में जीवन के जो परम गुह्य सत्य हैं, वे केवल उन्हें ही पता चलते हैं, जिन्होंने यह दौड़ पूरी कर ली; जो पके; जिन्होंने जिंदगी में जल्दबाजी न की, अधैर्य न बरता; जो समय के पहले भाग न खड़े हुए। पलायन से कोई कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचा है। और न पराजय से कभी त्याग फलित हुआ है। इसलिए उपनिषद कहते हैं : तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। जिन्होंने भोगा, उन्होंने ही त्याग किया है। जिसने भोगा ही नहीं, वह त्याग न कर सकेगा। उसके त्याग में भोग की वासना दबी ही रहेगी, छिपी ही रहेगी, बनी ही रहेगी। वह त्याग भी करेगा तो भोग के लिए ही करेगा; इसी आशा में करेगा कि किसी परलोक में भोग मिलने को है। जिसका त्याग भोग से आया, उसके मन से परलोक की भाषा ही समाप्त हो जाती है। क्योंकि जहां वासना नहीं है, वहां परलोक कैसा? जहां वासना नहीं है, वहां स्वर्ग कैसा? जहां वासना नहीं है, वहां अप्सराएं कैसी? जहां वासना नहीं है, वहां कल्पवृक्ष नहीं लगते। कल्पवृक्ष वासनाओं का ही विस्तार है-और ध्यान रखना, पराजित वासनाओं का; हारे हुए मन का, थके हुए मन का। जो इस जिंदगी में जीत न पाया, वह परलोक की जिंदगी में जीतने के सपने देखता है। 60
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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