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एस धम्मो सनंतनो
तो वह कभी इतना प्रौढ़ न हो पाएगा, जब कि खिलौने व्यर्थ हो जाएं। अगर बच्चे से खिलौने समय के पहले छीन लिए गए तो खिलौनों की आकांक्षा भीतर बनी रह जाएगी; वह नए-नए रूपों में प्रगट होती रहेगी।
सोचो! छोटा बच्चा एक कार रखे बैठा है और खेल रहा है। वह बड़ा हो जाएगा, फिर भी कार से ही खेलेगा। अब कार बड़ी ले आएगा माना, मगर खेल जारी रहेगा। अब भी कार के प्रति वही पागलपन रहेगा जो छोटे बच्चे का खिलौने वाली कार के प्रति था, कोई भेद न पड़ेगा। ___ छोटे बच्चे गुड्डा-गुड्डियों का शादी-विवाह करवा रहे हैं, मत रोको, करवा लेने दो; नहीं तो राम-सीता की बारात निकालेंगे, वे मानेंगे नहीं। राम-सीता जरा बड़े साइज के गुड्डा-गुड्डी हैं। खेल जारी रहेगा। ज्यादा खतरनाक हो गया यह मामला।
जो जिस स्थिति में है, उस स्थिति में जो भी किया जा रहा है, ठीक है। तुलना तब पैदा होती है जब तुम दूसरी स्थिति के लोगों की बात सुन लेते हो, तो झंझट खड़ी हो जाती है। बुद्ध ने कह दिया, सब व्यर्थ है राग-रंग, तुम मुश्किल में पड़े! तुम अभी बुद्ध नहीं हो। अभी राग-रंग सार्थक था, इसलिए तुम उसमें थे। अब यह बुद्ध ने एक अड़चन खड़ी कर दी। अब तुम्हारे सामने सवाल उठता है कि राग-रंग छोड़ें! मैं तुमसे कहता हूं, छोड़ने की जल्दी मत करना। वहीं त्यागी भूल कर लेता है। समझने की कोशिश करना।
बुद्ध कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। ठीक मान मत लेना। बुद्ध कहते हैं, ठीक ही कहते होंगे; गलत कहने का कोई कारण नहीं है। क्योंकि बुद्ध तुम्हारी अवस्था से गुजर चुके हैं, तुमसे आगे जा चुके हैं, इन खेल-खिलौनों में खुद भी रहे थे। इसलिए जो कहते हैं, ठीक ही कहते होंगे। लेकिन यह बुद्ध का वक्तव्य है, तुम्हारा मत बना लेना। तुम तो समझने की कोशिश करना इस खेल को। इस खेल की समझ में ही तुम्हें धीरे-धीरे दिखाई पड़ेगा कि बुद्ध ठीक कहते हैं। यह ठीक होना तुम्हारा अनुभव भी बन जाएगा। अचानक तुम पाओगे: खेल-खिलौने छूटने लगे, पड़े रह गए एक कोने में। एक दिन हर बच्चे के खेल-खिलौने कोने में पड़े रह जाते हैं। इसके पहले सो भी नहीं सकता था उनके बिना, रात भी छाती से लगाकर सोता था; फिर एक दिन कोने में पड़े रह जाते हैं, फिर कचरे-घर में चले जाते हैं, फिर याद भी नहीं आती। वर्षों बीत जाते हैं, याद भी नहीं आती कि क्या हुआ उन खिलौनों का, जिनके बिना सोना भी मुश्किल था।
जरूर तुम भी आगे बढ़ जाओगे। लेकिन जल्दी मत करना। जीवन में कोई जल्दबाजी नहीं हो सकती। जीवन धीरे-धीरे पकता है। राग-रंग हैं, ठीक है। तुम्हारी अवस्था में जो जरूरी है, वह तुम्हें मिला है। हर आदमी को जो जरूरी है जिस अवस्था में, मिलता है। यही तो जीवन का संगीत है।
समझ को बढ़ाना। समझ के बढ़ते ही तुम जैसे समझ में ऊंचे उठोगे, तुम
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