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________________ तू आप है अपनी रोशनाई पाओगे: जो जरूरी नहीं था, वह छूटने लगा, और अब जो जरूरी है वह मिलने लगा। जीवन सदा तुम्हारी जरूरत पूरा करने को आतुर है। कंठ ही नहीं प्यासा है, जल भी प्यासा है। एक ही बात ध्यान में रखने की है कि तुम जहां हो, उस स्थिति को जितना सजग होकर जी सको उतना शुभ है। पूर्णता भी आएगी, राग-रंग भी छूट जाएंगे। राग-रंग भी छूटेंगे, पूर्णता भी आएगी। वह एक ही साथ घटता जाएगा। उसकी तुम चिंता ही मत रखो। उसका हिसाब भी मत रखो। तुम इतना ही कर पाओ तो बस कि तुम जहां हो, जैसे हो, जो कर रहे हो, बिना निंदा के, बिना निर्णय के, बिना न्यायाधीश बने, बिना जल्दबाजी किए, चुपचाप समझने की कोशिश करते जाना। हर अनुभव तुम्हारी समझ को गहरा जाए। हर अनुभव-दुख का, सुख का, हार का, जीत का, धन का, निर्धनता का, महल का, भीख का-हर अनुभव तुम्हारी समझ को गहराता जाए, बस। ऐसा न हो कि अनुभव तो गुजर जाए और समझ वहीं की वहीं रह जाए, तब तुम अटक गए। एक ही चीज को मैं पाप कहता हूं-और वह यह कि अनुभव आए, चला जाए, और समझ वहीं की वहीं रह जाए। बस एक पाप है। फिर इस पाप से सारे पाप पैदा होते हैं। एक भूल है—एकमात्र भूल! क्रोध तुम करो, इससे मैं इनकार नहीं करता-करोगे ही। क्या कर सकते हो तुम? जहां तुम हो वहां जरूरी है। लेकिन हर क्रोध तुम्हें समझदार बनाता जाए; हर क्रोध के बाद तुम्हारी सजगता बढ़ती जाए; हर क्रोध से गुजरते समय तुम क्रोध की पहचान से भरते जाओ। धीरे-धीरे तुम पाओगे कि क्रोध के द्वारा ही तुमने जो समझ का इत्र निचोड़ा; वही तुम्हें क्रोध से मुक्त करा जाता है। क्रोध में ही क्रोध से मुक्त होने के आधार छिपे हैं। कामवासना है, कोई फिक्र न करना; लेकिन बोधपूर्वक कामवासना में उतरना, होशपूर्वक उतरना। कामवासना से ही धीरे-धीरे ब्रह्मचर्य का इत्र निचुड़ आता है, जैसे कीचड़ से कमल उग आते हैं, ऐसे ही जीवन के कलमष से, अंधेरे से, जीवन के सौंदर्य का जन्म होता है। बस, जरा जागकर चलना। आज इतना ही। 57
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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