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________________ एस धम्मो सनंतनो मौन अधर की भाषा तृषित न केवल कंठ नीर भी है उतना ही प्यासा तुम्हारा कंठ ही प्यासा नहीं पानी के लिए, पानी भी तुम्हारे कंठ के लिए इतना ही प्यासा है। इस संवाद का नाम ईश्वर है। अणु-विराट के बीच गुफ्तगू चल रही है। बूंदद- सागर के बीच संवाद चल रहा है। इसलिए अपनी अभीप्सा को पहचानना । मन की मत सुनना । मनं तो मुर्दा है | भीतर के प्राणों की सुनना - प्राण क्या कहते हैं ? प्राण तुम्हें रोज कहते हैं कि तुम्हारी जो जिंदगी तुमने बना ली है, ऊब से भरी है, थोथी है, कपट है। न तो तुम खुलकर गा रहे हो, क्योंकि तुम डर रहे हो; न तुम खुलकर उड़ रहे हो, क्योंकि तुम घबड़ा रहे हो; न तुम खुलकर जी रहे हो, क्योंकि डर है कहीं हाथ में जो है वह छूट न जाए।' 1 अगर तुम्हें और विराट को पाना है तो हाथ में जो है वह छूटेगा ही । हाथ खाली करने होंगे, प्राण खाली करने होंगे। अगर तुम्हें आगे जाना है तो जिस जमीन पर तुम खड़े हो, उस जमीन को छोड़ना ही होगा, नहीं तो आगे कैसे जाओगे? अगर एक सीढ़ी चढ़ना है तो उस सीढ़ी से पैर उठा ही लेना होगा। माना कि जिस सीढ़ी पर तुम खड़े थे ज्यादा सुरक्षा थी, पता था कि सीढ़ी है, दूसरी सीढ़ी पता नहीं हो या न हो। अभीप्सा का भरोसा करना । अगर उठने की आकांक्षा पैर में है तो सीढ़ी होगी । इस पैर की उठने की आकांक्षा और सीढ़ी का होना सुनिश्चित है, नहीं तो पैर उठना ही न चाहता। इस सुनिश्चय का नाम धर्म है । जिसने इस बात को समझ लिया, फिर भयभीत नहीं होता। और जब तुम दो-चार - दस प्रयोग करके देखोगे तो तुम पाओगे : अरे! मैं नाहक ही बंधा बैठा था, और और सीढ़ियां थीं। सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं। पंख समझते हैं अंबर के 54 मौन अधर की भाषा तृषित न केवल कंठ नीर भी है उतना ही प्यासा आखिरी प्रश्न : क्या यह सच नहीं है कि जब तक मनुष्य अधूरा, अपूर्ण है, तब तक जीवन के छंद-राग उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे ? प्रश्न यह है कि वह पूर्ण कैसे हो ?
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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