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________________ तू आप है अपनी रोशनाई बूंद में और सागर में। एक निरंतर संवाद चल रहा है। पंख दिए, आकाश न दोगे व्यर्थ मृत्यु जीवन की रेखा निष्फल है कटु मधु का लेखा केवल कपट, अगर कोयल को कंठ दिए, मधुमास न दोगे पंख दिए, आकाश न दोगे जहां से पंख आ रहे हैं, वहीं से आकाश भी आ रहा है। वे साथ ही साथ आ रहे हैं, जोड़े में आ रहे हैं। पंख दिए, आकाश न दोगे तो पंख किसलिए होंगे? तुम्हारे भीतर अभियान की इतनी आकांक्षा दी है। तुम्हारे भीतर इतनी प्यास दी है नए-नए शिखरों को छूने की । तुम्हारे भीतर कैलाशों को पार कर जाने की इतनी गहन अभीप्सा दी है, तो निश्चित ही कहीं कोई कैलाश तुम्हारे पैरों के लिए पीड़ित होंगे, प्यासे होंगे, बुलाते होंगे ! पंख दिए, आकाश न दोगे तब तो बात बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। इसी का अर्थ ईश्वर है कि अस्तित्व में एक संवाद है। यहां कुछ भी व्यर्थ नहीं । अगर पंख हैं तो आकाश है। पंखों के होने के पहले आकाश है। भूख के पहले भोजन है। प्यास के पहले जल है। I पंख दिए, आकाश न दोगे • व्यर्थ मृत्यु जीवन की रेखा निष्फल है कटु मधु का लेखा केवल कपट तब तो जीवन एक कपट होगा ! केवल कपट, अगर कोयल को कंठ दिए, मधुमास न दोगे जब कोयल को कंठ दिया तो वसंत भी आता ही होगा, कहीं छिपा ही होगा । अन्यथा कोयल गाएगी कहां, गाएगी किसलिए ? तो तुम घबड़ाना मत। अपनी अभीप्सा को पहचानना। अगर तुम्हारी अभीप्सा दूर जाने की है, आकाश में उठ जाने की, तो सारी सुरक्षाओं के मोह छोड़ देना । घबड़ाना मत, जोखिम उठाना। जोखिम जीवन है। पंख समझते हैं अंबर के मौन अधर की भाषा पंख समझते हैं अंबर के 53
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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