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एस धम्मो सनंतनो
__ यह शब्द बड़ा अच्छा है। इसका मतलब होता है : जिसका घर अपने कंधे पर है। खानाबदोश-दोश यानी कंधा; खाना यानी घर। खानाबदोश यानी जिसका घर अपने कंधे पर है। आदमी का होना, आदमी का असली होना, उसकी खानाबदोशी पर निर्भर है। इस जगत को उन्होंने ही अधिक गहराई से जाना, पहचाना, परखा और जीया है, जिन्होंने कहीं अपने को बांधा नहीं है। ___ इसका यह अर्थ नहीं कि कभी धूप में वे किसी वृक्ष के नीचे विश्राम को नहीं रुके। इसका यह अर्थ नहीं कि उन्होंने घर-गृहस्थियां नहीं बनायीं। पर इतना उन्हें सदा स्मरण रहा कि सब सरायें हैं, धर्मशालाएं हैं, रुकना है और आगे बढ़ जाना है। मंजिल कहीं भी नहीं है, सब पड़ाव हैं। खेमा गाड़ा है आज रात, कल सुबह उखाड़ लेना है। तभी तुम पाओगे कि धीरे-धीरे वे जो सितारों के आगे जहां और भी हैं, तुम्हारे लिए उपलब्ध होने लगे।
तुम अपने ही हाथ से अपनी गर्दन नीचे करके जमीन पर सरक रहे हो। तुम उड़ने के लिए बने हो। तुम पंखों का उपयोग ही नहीं करते।
असुरक्षा से और कुछ अर्थ नहीं है। असुरक्षा का अर्थ यह है : नए की जोखिम उठाने की सदा तैयारी रखना। __ मेरे साथ भी जो लोग चलते हैं, वे भी एक नई तरह की सुरक्षा बांध लेते हैं। कभी-कभी मेरे पास आ जाते हैं कि आपने कल कुछ और कहा था, आज आपने कुछ और...।
कल को जाने भी दो-सराय है। मैं नहीं कल पर रुका, तुम क्यों रुक गए हो? मेरे साथ चलना हो तो रुकना संभव नहीं है। इसीलिए कठिनाई होती है।।
. बुद्ध जब जिंदा थे तो लोगों को कठिनाई थी साथ चलने में। क्योंकि यह आदमी पारे की तरह है : मुट्ठी बांधो, बंधता नहीं, बिखर जाता है। मर गए, फिर संप्रदाय बन गया। अब कोई झंझट न रही, बात खतम हो गई। इति आ गई! पूर्ण विराम आ गया। अब तो बुद्ध गड़बड़ न कर सकेंगे। अब तो हमारी मुट्ठी में हैं। अब शास्त्र बन सकता है।
बुद्धत्व एक यात्रा है। बुद्ध के मरते ही तुम शास्त्र बना लेते हो, संप्रदाय बना लेते हो। बुद्धों के साथ चलना कठिन, लेकिन उनकी पूजा करना आसान। उनके साथ होना कठिन, उनके पैर में पैर मिलाकर चलना कठिन; क्योंकि तुम्हारी आदत घर बनाने की और उनकी आदत घर बिगाड़ने की! ___तुम आशिया-परस्त हो, तुम मकान बना लेते हो, फिर छोड़ने में तुम्हें डर लगता है। तुम कहते हो, कल आपने यह कहा था। कल गया! गंगा का कितना जल बह गया! गंगा से नहीं कहते कि कल कुछ बात और थी, आज कुछ बात और है! सूरज से नहीं कहते कि कल कुछ और तरह के बादल घिरे थे तुम्हारे पास, आज कुछ और हैं! चांद से नहीं कहते कि कल तेरी रंग-रौनक और थी, आज कुछ और है!