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तू आप है अपनी रोशनाई
तही जिंदगी से नहीं ये फजाएं ये आकाश और-और जिंदगियों से भरे हैं, खाली नहीं हैं।
तही जिंदगी से नहीं ये फजाएं
यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं इस एक यात्रा-पथ को सब मत समझ लेना, इस यात्री-दल को सब मत समझ लेना। यहां और बहुत यात्री-दल हैं, अनंत-अनंत रूपों में यात्रा चल रही है।
तू शाहीं है, परवाज है काम तेरा
तेरे सामने आसमां और भी हैं तू दूर तक उड़ जाने वाला पक्षी है, घोंसले बनाकर रुक मत जाना।
तेरे सामने आसमां और भी हैं
इसी रोजो-शब में उलझकर न रह जा इसी रात-दिन के चक्कर में उलझकर समाप्त मत हो जाना।
कि तेरे जमां-ओ-मकां और भी हैं और बहुत खोज बाकी है।
सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं मैं जो तुमसे कहता हूं असुरक्षा के लिए, उसका कुल इतना प्रयोजन है कि मन की आदत है सुरक्षा को बनाकर उसी आशियां में, उसी घर में छिप रहने की, सुरक्षा की कब्र बना लेने की। नए से मन डरता है, अपरिचित से भयभीत होता है, अनजान से बचता है। इसलिए तुम हिंदू हो तो तुम रोज मंदिर चले जाते हो-कभी मस्जिद भी जाया करो! मस्जिद में भी कुछ घट रहा है—एक दूसरा यात्री-दल! मुसलमान हो, मस्जिद में ही मत अटके रह जाना; मंदिर में भी कुछ घट रहा है-कोई और यात्री-दल!
जीवन जितने द्वार खोलता है, तुम किसी एक ही द्वार का आग्रह मत करना। तुम अपने हाथों संकीर्ण क्यों हुए जाते हो? तुम क्यों कहते हो, मैं हिंदू हूं? क्यों कहते हो, मैं मुसलमान हूं, ईसाई हूं, जैन हूं? क्यों घर बांधते हो? खुला आकाश तुम्हें रास नहीं आता? खुला आकाश तुम्हें घबड़ाता है ? तुम बिना सीमा खींचे अपने चारों तरफ बेचैनी अनुभव करते हो? तो गुलामी की तुम्हें आदत हो गई है; तो कारागृह तुम्हारी आदत हो गई है; तो कारागृह तुम्हारा नशा हो गया है। ___ बड़ी दूर की यात्रा है। यहां कोई भी घर मत बनाना। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि रात विश्राम के लिए तुम कहीं मत रुकना। बस रात विश्राम के लिए ठीक है। लेकिन ध्यान रखना, सभी घर सराय हैं; सुबह हुई, उठना है, आगे बढ़ जाना है। न तो मन की कोई धारणाएं, न शास्त्र, न संप्रदाय-कोई भी तुम्हारे लिए घर न बने; तुम सदा मुक्त रहो जाने को; तुम्हारे पैर सदा तत्पर रहें यात्रा के लिए; तुम खानाबदोश रहो!
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