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एस धम्मो सनंतनो
नहीं वृक्षों की छाया होगी कि न होगी; नए लोग, नई स्थितियां, अपरिचित हैं, अजनबी हैं, पता नहीं उनसे हम जीत पाएं न जीत पाएं। यह पुराने दुश्मनों से ही लड़े जाना अच्छा है, इनसे हम जीतने के आदी हो चुके हैं, अभ्यस्त हो चुके हैं। यह पुराने दुखों को ही झेलते रहना अच्छा है, इनसे हमने पहचान बना ली है, इनसे अब पीड़ा भी नहीं होती। यह पुरानी जगह में ही कैद बने रहना अच्छा है, क्योंकि सब जाना-माना है, डर कुछ भी नहीं।
अनजान से डर लगता है। अपरिचित से भय लगता है। लेकिन सारी गति अपरिचित में है। सारी गति अनजान में है। वह अनजान का नाम ही ईश्वर है। जो सदा अनजाना रहेगा, जिसे तुम जान-जानकर भी चुका न पाओगे, जिसे तुम जितना जानोगे उतना ही जानोगे कि कुछ भी न जाना—वही ईश्वर है। ___ ईश्वर कोई ध्यक्ति नहीं है, कहीं बैठा नहीं है। अब तक मर गया होता; कितना समय हुआ बैठे-बैठे! ईश्वर अगर कोई व्यक्ति होता तो कभी का मर गया होता। व्यक्ति तो मरेंगे ही। थक गया होता, ऊब गया होता। थोड़ा सोचो भी उसकी मुसीबतें। तुम तो सोच लेते हो, व्यक्ति है, आकाश में बैठा है, दुनिया चला रहा है। एक दुकान चलाते-चलाते तुम ऊब जाते हो! पागल हो गया होता। थोड़ा सोचो, इतना सारा उपद्रव चलता है, चलता ही रहता है, सबकी जिम्मेवारी उसी की!
नहीं, ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है। ईश्वर उस अनंत संभावना का नाम है जो कभी चुकती नहीं। ईश्वर केवल यात्रा का नाम है। इसलिए जो ठहरा, वह अधार्मिक हुआ; जो चलता रहा, वही धार्मिक। बुद्ध ने कहा है: चरैवेति! चरैवेति! चलते रहो! चलते रहो! रुकना नहीं।
सितारों से आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं कनाअत न कर आलमे-रंगो-बू पर
चमन और भी, आशियां और भी हैं जो थोड़ी सी सुगंध फूलों की मिली है, उस पर संतुष्ट मत हो जाना! कनाअत न कर-संतोष मत कर लेना। आलमे-रंगो-बू पर—इस संसार में जो थोड़ी सी गंध मिल गई, इसको काफी मत समझ लेना। यह तो केवल संदेश है कि और गंधे छिपी हैं। यह तो केवल पहली खबर है। यह तो पहला द्वार है। अभी तो पूरा महल बाकी है। और यह महल ऐसा है, जो कभी चुकता नहीं है।
चमन और भी, आशियां और भी हैं। अगर खो गया एक नशेमन तो क्या गम
मकामाते-आहो-फुगां और भी हैं अगर एक घर खो गया तो घबड़ाना मत, बहुत और घर हैं। अगर एक घोंसला गिर गया तो घबड़ाना मत, बेचैन मत हो जाना।
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