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________________ तू आप है अपनी रोशनाई यह मत कहना कि तुम पहुंचने में असमर्थ हो। एक छोटी सी बूंद में पूरा सागर छिपा है। एक कदम में पूरी यात्रा छिपी है। तीसरा प्रश्नः आप अक्सर असुरक्षा की बात करते हैं और मैं सुरक्षा ढूंढ़ता फिरता हूं। कृपया अपनी असुरक्षा की बात हमें अच्छी तरह समझाएं। अ सुरक्षा का इतना ही अर्थ है कि जहां तुम हो, वही तुम्हारे होने की नियति न बन जाए। जो तुम हो, उससे तुम तृप्त मत हो जाना। बहुत आगे जाना है। बहुत होना है। बहुत कुछ होना है! कहीं ऐसा न हो कि जो तुम हो गए हो, तुम यह मान लो कि यह होने की इतिश्री है। __ मन की यह आदत है। मन कहता है, पहुंच गए। मन जैसे मानकर ही चलता है कि पहुंच गए। जरा एक कदम चलता है और बैठ जाने की आकांक्षा करता है। मन बड़ा आलसी है। असुरक्षा का यही अर्थ है कि तुम निरंतर नई जोखिम लेते रहना, मन को बैठने मत देना। आकाश बहुत बड़ा है। तुमने जो घोंसले बना लिए हैं, उनको तुम आखिरी बात मत समझ लेना। बहुत दूर जाना है। अगर तुम ठीक से समझो तो इस यात्रा की कोई मंजिल नहीं है, यह यात्रा ही मंजिल है। यह चलते जाना ही जीवन है। ठहर जाना मौत है। सुरक्षा यानी कब्र। कब्र से ज्यादा सुरक्षित तुम कोई जगह पा सकते हो? लोग जिंदा-जिंदा अपनी कब्र बना लेते हैं, सब तरफ से सुरक्षित कर लेते हैं—न कोई सूरज की किरण, न कोई हवा का झोंका, न कोई जीवन का कष्ट, न कोई चुनौती, न कोई संघर्ष-तुम मर गए! मरने को भी अब क्या बचा? मौत भी आएगी तो पछताएगी कि इस आदमी के पास नाहक आना हुआ, यह तो पहले ही मर चुका था। जीवंत होने का अर्थ है : चुनौती ताजी रहे, रोज नए की खोज जारी रहे। क्योंकि नए की खोज में ही तुम अपने भीतर जो छिपे हैं स्वर, उन्हें मुक्त कर पाओगे। नए की खोज में ही तुम नए हो पाओगे। जैसे ही नए की खोज बंद होती है कि तुम पुराने हो गए, जराजीर्ण हो गए, खंडहर हो गए। एक क्षण को रुकती है नदी की धार और गंदी होनी शुरू हो जाती है। पवित्रता तो सदा बहते रहने का नाम है। तभी तक धार पवित्र और निर्मल रहती है जब तक बहती रहती है। बहती धार रहना। पर बहती धार में असुरक्षा है। नए किनारे पता नहीं कैसे हों; नए स्थान, पता
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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