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एस धम्मो सनंतनो के रास्ते पर पड़ती है। और कामवासना में भी प्रेम के बीज छिपे हैं। और प्रेम में प्रार्थना के बीज छिपे हैं। और प्रार्थना में परमात्मा के बीज छिपे हैं।
स्मरण रहे कि जीवन को एक श्रृंखलाबद्ध विकास की तरह देखना है। तो तुम्हें अगर समझ में आ रहा है कुछ, तो उस कुछ में और बहुत कुछ समझने की संभावना छिपी है। जो समझ में नहीं आ रहा, उसकी फिक्र मत करना, क्योंकि वह बहुत बड़ा है जो समझ में नहीं आ रहा है। अगर उसकी तुमने चिंता की तो तुम घबड़ाकर बैठ जाओगे। रास्ता दस हजार मील का है, तुम एक कदम चले हो-अगर तुमने दस हजार मील का हिसाब रखा, हिसाब ही तुम्हें घबड़ा देगा। तुम डगमगा जाओगे। दस हजार मील और ये छोटे कदम और यह छोटी सी क्षीण ऊर्जा ! इतना भयंकर अंधकार
और यह छोटा सा ध्यान का दीया! तुम घबड़ा जाओगे। तुम्हारी घबड़ाहट में यह छोटा सा दीया भी बुझ जाएगा, तुम बैठ ही जाओगे। तुम फिर उठ ही न पाओगे। यही जड़ता है।
अगर गलत को देख लिया तो आदमी जड़ हो जाता है। अगर ठीक पर नजर रखी, एक कदम उठा लिया, तो उसमें तुमने दस हजार मील पार कर ही लिए।
महावीर ने कहा है : जो चल पड़ा, वह पहुंच ही गया।
अब यह बड़ी महत्वपूर्ण बात थी, लेकिन एक तार्किक विवादी महावीर के विरोध में खड़ा हो गया। उसने कहा, यह बात गलत है।
कुछ बातें हैं जो तर्क के बड़े आगे हैं, गलत-सही के बड़े आगे हैं। जिसने यह विवाद किया वह महावीर का दामाद था खुद। वह महावीर के पांच सौ संन्यासियों को लेकर अलग हो गया। पांच सौ लोगों को अलग कर सका, तो थोड़ी तो तर्क की प्रतिभा रही होगी। महावीर से तोड़ सका! और अगर तुम भी सोचोगे तो तुम पाओगे कि दामाद ठीक मालूम पड़ता है। क्योंकि उसने यह कहा कि तुम कहते हो, जो चल पड़ा वह पहुंच गया-यह बात जंचती नहीं, क्योंकि चलकर भी कोई रुक सकता है। चलकर भी कोई रुक सकता है, इसलिए पहुंचने का क्या पक्का है? चलकर फिर बैठ जाए। बीज बो दिया, इससे वृक्ष हो गया, यह कोई पक्का थोड़े ही है। हो सकता है, न भी हो।
लेकिन महावीर कुछ और ही बात कह रहे थे; वे किसी काव्य का वक्तव्य दे रहे थे; वे कोई तथ्य की बात नहीं कह रहे थे; वे किसी बड़ी दूरगामी दिशा की ओर इशारा कर रहे थे। वे कह रहे थे, जो चल पड़ा वह पहुंच ही गया। वे यह कह रहे थे कि जिसने एक कदम उठा लिया, अब उसको दस हजार मील पार करने की कठिनाई कहां? न करे, उसकी मर्जी; मगर मंजिल मिल गई। अब यह मत कहना कि मंजिल नहीं मिली; बात हो गई। तुमने एक कदम उठा लिया तो एक-एक कदम उठकर तो कितनी ही दूरी पूरी हो जाती है। अब तुम्हारी मर्जी-तुम न उठाओ, तुम बैठ जाओ, तुम रास्ते के पड़ाव को मंजिल समझ लो—यह तुम्हारी मौज। लेकिन
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