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________________ एस धम्मो सनंतनो अगर कांटे हैं, तो वह सोचेगा कि जरूर वे इस फूल की रक्षा के लिए होंगे, जरूर इस फूल के हित में होंगे, उनकी कोई जरूरत होगी। कांटों से भी उसकी दुश्मनी चली जाती है जो फूल को देखने लगता है; जो कांटों को देखने लगता है, फूल से भी उसकी दोस्ती हट जाती है। देखने पर बहुत कुछ निर्भर है। सब कुछ निर्भर है। दृष्टि अर्थात सृष्टि। तुम कैसे देखते हो! ___ यह पतझर पथ मधुमासों का पतझड़ में मधुमास को देखना। पतझड़ में वसंत के पैरों की पगध्वनि सुनना। गौर से सुनोगे, बराबर सुनाई पड़ेगी, क्योंकि आ रहा वसंत। यह पतझड़ तो तैयारी है। यह तो पुरानी धूल-धवांस को झाड़ना है। यह तो मरे-गले पत्तों को वापस पृथ्वी में भेजना है। यह तो नए पत्तों के लिए स्थान बनाना है। ___ जहां एक पुराना पत्ता गिर रहा है, अगर गौर से देखोगे तो नए को उमगते पाओगे। वृक्ष फिर से नए हो रहे हैं, फिर से हरे होने की तैयारी कर रहे हैं। जैसे सांप केंचुली से सरककर निकल जाता है, ऐसे वृक्ष पुरानी केंचुली को छोड़ रहे हैं-उसे तुम पतझड़ कहते हो। वह नए होने का उपक्रम है। ___मगर ऐसे नासमझ भी हैं जो वसंत में पतझर की पगध्वनि सुन लेते हैं। तब वसंत का सौंदर्य भी खो जाता है। तब वसंत में भी वे रोते हैं, क्योंकि पतझर आता होगा। तब फूल भी उन्हें हंसा नहीं सकते, और आंसुओं से भर जाते हैं। __यह संशय अथ विश्वासों का तुमने जिसे विश्वास जाना है अब तक, तुमने कभी गौर किया, कहीं तुम उसके भीतर संशय को तो नहीं छिपाए हो? तुम मानते हो, ईश्वर है-सच में माना है, या केवल एक संशय था और संशय को तुमने छिपा दिया है? संशय पीड़ा देता है, चुभता है, खलता है। संशय बेचैन करता है। संशय के साथ जीना कठिन है। संशय के साथ उसी बिस्तर पर सोना कठिन है जिस पर तुम सोते हो। संशय डगमगाएगा। संशय रात की नींद छीन लेगा। तो तुम कहते हो, ईश्वर है। लेकिन तुम्हारे ईश्वर है के नीचे संशय तो नहीं छिपा है? जहां तक मैं देखता हूं, अधिक विश्वासियों के विश्वास के नीचे संशय की राख है, संशय ही संशय के ढेर लगे हैं। उनको उन्होंने छिपा लिया है विश्वास की पर्त में। क्योंकि इतना साहस नहीं कि उनका साक्षात्कार कर सकें और इतना साहस नहीं कि संशय को जी सकें, हिम्मत नहीं है। इसलिए जवान आदमी विश्वास नहीं करता, थोड़ी हिम्मत. होती है। बूढ़ा आदमी विश्वास करने लगता है। मौत करीब आने लगी, अब संशय को ढांकने का वक्त आ गया; अब तो मानना ही पड़ेगा कि परमात्मा है। क्योंकि मौत करीब आती है; हो या न हो, मान लेना हितकर है, लाभपूर्ण है। बूढ़ा हिसाब लगाने लगता है। इसलिए मंदिर-मस्जिद बूढ़ों से भरे हैं। वहां कोई जाता ही नहीं, जब तक बूढ़ा 44
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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